तीर्थनगरी के आरएसएस व पीएम के खिलाफ अभद्र भाषा का प्रयोग करने पर कांग्रेस नेता पर मुकदमा

ऋषिकेश में राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ और प्रधानमंत्री पर सोशल मीडिया में अभद्र भाषा का प्रयोग करने के आरोप में कांग्रेस नेता के खिलाफ कोतवाली में तहरीर दी गई। देहरादून निवासी युवक की तहरीर पर पुलिस ने कांग्रेस नेता दीपक जाटव पर आईटी ऐक्ट सहित दो अन्य धाराओं में मुकदमा दर्ज किया है। वहीं, कांग्रेस नेता दीपक जाटव ने कहा कि यह मामला पूरी तरह से राजनीतिक द्वेष से परिपूर्ण है, उन्होंने कहा कि राजनीतिक साजिश के तहत उन पर यह आरोप लगाए गए है।

कोतवाल शिशुपाल सिंह नेगी ने बताया कि देहरादून निवासी दीपक सोनकर पुत्र नंद किशोर ने कोतवाली में तहरीर दी है। इसमें बताया गया है कि शिकायतकर्ता आरएसएस कार्यकर्ता है। आरोप लगाया है कि शांति नगर निवासी दीपक जाटव लगातार सोशल मीडिया पर आरएसएस और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ अभद्र भाषा का प्रयोग कर रहे है। बताया कि पीएम व आरएसएस की छवि धूमिल हो रही है। शिकायतकर्ता के अनुसार सोशल मीडिया पर इस तरह की अभद्र भाषा से उन्हें मानसिक आघात पहुंचा है।

दीपक सोनकर ने तहरीर में दीपक जाटव के खिलाफ मुकदमा दर्ज कर कानूनी कार्रवाई करने की मांग की है। कोतवाल शिशुपाल सिंह नेगी ने बताया कि आरोपी पर 67 आईटी ऐक्ट सहित अन्य धाराओं में मुकदमा दर्ज कर लिया गया है। मामले की जांच की जा रही हैं।

हाईकोर्ट में दाखिल अपनी याचिका को वापस लेने के मूड़ में है वन मंत्री

उत्तराखंड में 2016 के हॉर्स-ट्रेडिंग केस में सीबीआई द्वारा पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत के स्टिंग केस में चल रही जांच मामले बीजेपी नेता हरक सिंह रावत हाईकोर्ट से अपनी याचिका वापस ले सकते हैं। कोर्ट को इस बारे में जानकारी दे दी गई है।

बता दें कि सीबीआई जांच मामले में हरक सिंह रावत ने याचिका दाखिल की है। उन्होंने सीबीआई की जांच को कैबिनेट द्वारा निरस्त कर एसआईटी जांच को चुनौती दी है। पूरे मामले पर एफआईआर दर्ज करने की मांग की थी, जिसके बाद सीबीआई ने एफआईआर दर्ज कर ली है. सीबीआई ने हरक सिंह रावत को भी आरोपी बनाया है।

यह है पूरा घटनाक्रम
गौरतलब है कि 2016 में विधायकों की खरीद-फरोख्त के आरोप में किए गए एक स्टिंग में केंद्र सरकार ने 2 अप्रैल, 2016 को राज्यपाल की मंजूरी के बाद सीबीआई जांच शुरू की थी। तब राज्य में कांग्रेस सरकार की बहाली हो गई और सरकार ने कैबिनेट बैठक में सीबीआई जांच को निरस्त कर मामले की जांच के लिए एसआईटी का गठन कर दिया। इसके बाद भी सीबीआई ने जांच जारी रखी और पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत को जांच के लिए 9 अप्रैल, 2016 को समन भेजा।

सीबीआई के लगातार समन भेजे जाने को हरीश रावत ने हाईकोर्ट में चुनौती दी और कहा कि राज्य सरकार ने 15 मई, 2016 को सीबीआई जांच के आदेश को वापस ले लिया था और एसआईटी का गठन कर दिया गया था। इसलिए सीबीआई को इस मामले की जांच का कोई अधिकार ही नहीं है। सीबीआई की पूरी कार्रवाई को निरस्त किया जाए। हाईकोर्ट ने सीबीआई को केस की जांच जारी रखने की इजाजत देते हुए यह कहा था कि कोई भी कदम उठाने से पहले उसे हाईकोर्ट की अनुमति लेनी होगी।

बहरहाल, हरीश रावत के सामने सीबीआई केस के रूप में बड़ी चुनौती है. 70 की उम्र पार कर चुके हरीश रावत के लिए राजनीति का यह दौर इतना भारी पड़ेगा इसका अंदाजा उन्हें शायद ही रहा हो। केस दर्ज होने के बाद अब उन पर गिरफ्तारी की तलवार लटक रही है।

न तहरीर रिसीब की और न लिखी एफआईआर, ऊपर से ले लिए एक हजार

गुमशुदा बेटे का पता लगाने के लिए कोतवाली ऋषिकेश में एफआईआर दर्ज कराने पहुंची बुजुर्ग महिला ने एक पुलिसकर्मी पर रिश्वत लेने का आरोप लगाया है। महिला का आरोप है कि रुपये देने के बावजूद भी न तो उनकी तहरीर रिसीब की और ना ही एफआईआर दर्ज की है। बीते माह 21 सितंबर को वाल्मीकि बस्ती ऋषिकेश निवासी बिट्टू उर्फ ब्रजपाल पुत्र इलम सिंह बिना बताए घर से संदिग्ध परिस्थितियों में लापता हो गया। बेटे की तलाश में बुजुर्ग मां प्रकाशी देवी ने छोटे बेटे के साथ अमृतसर सहित हर संभावित जगहों की खाक छान डाली। जब बेटे का कोई सुराग नहीं लगा तो वह कोतवाली पहुंची।

महिला ने बताया कि कोतवाली परिसर में बैठे एक पुलिसकर्मी ने उनके छोटे बेटे से कहा कि एफआईआर दर्ज कराने के लिए एक हजार रुपये देने पड़ते हैं। मजबूरन एक हजार रुपये पुलिसकर्मी को दे दिए। इसके बाद पुलिसकर्मी ने कहा कि वह अपने गुमशुदा बेटे के 60 पोस्टर भी छपवाकर लाएं। पैसों की कमी के कारण वह 50 पोस्टर छपवाकर ले आई। प्रकाशी देवी का आरोप है कि पुलिस ने पोस्टर छपवाने के नाम पर पैसे खर्च करवाए, ऊपर से एक हजार रुपये भी लिए। इसके बावजूद न तो तहरीर रिसीव की गई और न ही मुकदमा दर्ज किया गया।

क्या हकीकत में देश की सबसे बड़ी एफआइआर उत्तराखंड में लिखी जा रही? जानिए…

कहा जा रहा है कि देश की सबसे बड़ी एफआइआर अपने राज्य में दर्ज होने जा रही है। अभी तक पांच दिन में 43 पेज की लिखत-पढ़त हो चुकी है। जबकि अभी 11 पेज और लिखा जाना बाकी है। इन पेजों के लेखाजोखा में पुलिस के भी पसीने छूट रहे हैं। इसके पीछे का कारण स्वास्थ्य विभाग है। जिसने आयुष्मान योजना में हुए घोटाले की जांच रिपोर्ट ही पुलिस को एफआइआर के रूप में दे दी है। वहीं एसएसपी ऊधमसिंहनगर बरिंदरजीत सिंह का इस बारे में कहना है कि देश की सबसे बड़ी एफआइआर है, ऐसा कहना संभव नहीं है। इसका कोई रिकॉर्ड नहीं है। एफआइआर लंबी है, इसलिए समय अधिक लग रहा है। विवेचक को विवेचना करने में ज्यादा दिक्कतों का सामना नहीं करना पड़ेगा। तथ्यों के आधार पर विवेचना की जाएगी।
आपको बता दें कि स्वास्थ्य विभाग की टीम ने अटल आयुष्मान योजना के तहत एमपी मेमोरियल अस्पताल और देवकी नंदन अस्पताल में भारी अनियमितताएं पकड़ी थीं। जांच में सामने आया कि अस्पताल के संचालक नियमों के खिलाफ मरीजों के फर्जी इलाज के बिलों का क्लेम वसूल रहे हैं। एमपी अस्पताल में मरीजों के डिस्चार्ज होने के बाद भी उनको कई-कई दिनों तक अस्पताल में भर्ती दिखाया गया। इसके अलावा आइसीयू में भी क्षमता से ज्यादा रोगियों का इलाज होना बताया गया। मामले की पूरी जांच के बाद स्वास्थ्य विभाग ने पूरी जांच रिपोर्ट ही पुलिस को एफआइआर दर्ज करने के लिए दे दी। स्वास्थ्य विभाग की जांच ही पुलिस के गले की फांस बनी हुई है। यदि स्वास्थ्य विभाग की तरफ से जांच का निष्कर्ष निकालकर दिया गया होता तो पुलिस को इतनी दिक्कतें नहीं झेलनी पड़तीं। हालांकि बांसफोड़ान पुलिस चैकी में देवकी नंदन अस्पताल संचालक पुनीत बंसल के खिलाफ 22 पेज की एफआइआर लिखी जा चुकी है। जबकि अभी एमपी मेमोरियल अस्पताल के खिलाफ एफआइआर दर्ज करने का सिलसिला जारी है।
एफआइआर को लिखने में लिपिक के सामने सबसे बड़ी दिक्कत भाषाएं बनी हुई हैं। स्वास्थ्य विभाग के द्वारा एफआइआर लिखने को दी गई जांच रिपोर्ट हिंदी-अंग्रेजी और गणित की भाषा में है। जिससे एक पेज लिखने में घंटों का समय लग रहा है। हालांकि मैनुअली लिखे जाने के साथ ही एफआइआर को साथ ही साथ पुलिस के सॉफ्टवेयर सीसीटीएनएस दर्ज किया जा रहा है। कटोराताल पुलिस चैकी में एमपी मेमोरियल अस्पताल के खिलाफ लिखी जा रही एफआइआर में अभी तक आठ रिफिल लग चुके हैं। जबकि अभी तीन-चार रिफिल और खर्च हो सकते हैं। इतना ही नहीं एफआइआर को लिखने में लिपिक को प्रतिदिन 14 घंटे का समय देना पड़ रहा है। जिसके बाद अन्य काम किए जा रहे हैं।