छह दिसंबर से एम्स में आयोजित होगी सोसाइटी ऑफ यंग बायोमेडिकल साइंटिस्ट्स प्रतियोगिता

अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान, एम्स ऋषिकेश में सोसाइटी ऑफ यंग बायोमेडिकल साइंटिस्ट्स, भारत के तत्वावधान में 6 से 10 दिसंबर 2021 को आयोजित होने वाली राष्ट्रीय जैव चिकित्सा अनुसंधान प्रतियोगिता वार्षिक वैज्ञानिक कार्यक्रम का निदेशक एम्स प्रोफेसर रवि कांत ने पोस्टर जारी किया।

सोसाइटी के अध्यक्ष व आयोजन सचिव रोहिताश यादव ने बताया कि एम्स, ऋषिकेश तथा पीजीआईएमईआर-चंडीगढ़ में सोसाइटी द्वारा आयोजित पहले और दूसरे राष्ट्रीय जैव चिकित्सा अनुसंधान प्रतियोगिता के सफल समापन के बाद एम्स ऋषिकेश में तीसरी वार्षिक अनुसंधान प्रतियोगिता देश के राष्ट्रीय महत्व के 7 अनुसंधान संस्थानों के साथ मिलकर आयोजित की जाएगी।

राष्ट्रीय महत्व व युवा वैज्ञानिकों को प्रोत्साहित करने वाली उक्त प्रतियोगिता की पहल 15 अक्टूबर 2018 को एम्स ऋषिकेश से शुरू की गई थी, जो आज बहुत बेहतर तरीके से संचालित हो रही है तथा इस आयोजन के जरिए देश के युवा वैज्ञानिकों को आगे बढ़ने का अवसर प्राप्त हो रहा है।

प्रो. रवि कांत जी ने संस्थान की ओर से इस प्रतियोगिता के पुरस्कार की धनराशि के तौर पर 1 लाख रुपए देने की घोषणा की है।

विश्व तम्बाकू निषेध दिवसः प्रत्येक वर्ग की भूमिका से तंबाकू सेवन पर लग सकता है प्रतिबंध


प्रतिवर्ष तंबाकू का सेवन करने वाले दस में से एक व्यक्ति की मृत्यु हो जाती है, इस पर रोक लगाने के लिए समाज के प्रत्येक वर्ग को अपनी भूमिका निभानी होगी। तंबाकू का सेवन न केवल मुंह के कैंसर का कारण है अपितु यह फेफड़ों में भी कैंसर पैदा करता है।

विश्व तम्बाकू निषेध दिवस के अवसर पर अपने संदेश में एम्स निदेशक प्रोफेसर रविकान्त ने कहा कि तम्बाकू हृदय की कोरोनरी वाहिकाओं को प्रभावित करता है। इसकी वजह से हृदय में रक्त की आपूर्ति की कमी हो जाती है। इसे इस्कीमिक या कोरोनरी हृदय रोग कहते हैं। मुंह के कैन्सर का प्रमुख कारण तम्बाकू ही है। सर्जिकल ऑन्कोलॉजी के विभागाध्यक्ष डॉ. एसपी अग्रवाल ने बताया कि तम्बाकू का सेवन करने वाले लोगों में अन्य लोगों की तुलना में कैन्सर का खतरा 6 से 8 गुना ज्यादा होता है। यदि तम्बाकू सेवन करने वाला व्यक्ति शराब का भी आदी हो तो फिर यह खतरा 10 गुना बढ़ जाता है। उन्होंने कहा कि स्कूल-कालेज के अध्यापकों, समाजसेवी संस्थाओं, जनप्रतिनिधियों और समाज के प्रत्येक वर्ग को इस मामले में जागरूकता लाने की आवश्यकता है।

एम्स ऋषिकेश में सर्विक्स कैंसर को लेकर 17 नवंबर को होगा वेबिनार आयोजित

अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान ऋषिकेश में महिलाओं में होने वाले सर्विक्स कैंसर के मामलों को लेकर चिंतित है। जिसके मद्देनजर संस्थान की ओर से कोविडकाल में वेबिनार के माध्यम से महिला जनजागरुकता अभियान शुरू किया जा रहा है। जिसके मद्देनजर 17 नवंबर को अपराह्न 2 से 3 बजे पहला वेबिनार आयोजित किया जाएगा। जिसमें डब्ल्यूएचओ एक्सपर्ट डा. आर शंकरनारायणन समेत देश के प्रसिद्ध वैज्ञानिक, चिकित्सा विशेषज्ञ, एनएचएम के वरिष्ठ प्रतिनिधि व मेडिकल हेल्थ एंड फेमिली वैलफेयर उत्तराखंड के सदस्य शिरकत कर सामूहिक चर्चा करेंगे। चिकित्सकों का कहना है कि भारत में सर्विक्स कैंसर (बच्चेदानी के मुहं का कैंसर ) के मामले काफी अधिक हैं।

एम्स निदेशक प्रो. रविकांत ने बताया कि महिलाओं में बच्चेदानी के कैंसर (सर्विक्स कैंसर) पर शत-प्रतिशत नियंत्रण संभव है, बशर्ते बालिकाओं को 9 से 14 वर्ष की उम्र के बीच इस कैंसर की रोकथाम के लिए वेक्सीन अनिवार्यरूप से लगाई जाए। उन्होंने बताया कि महिलाओं में पाया जाने वाला सर्विक्स कैंसर ही एक ऐसा कैंसर है जिसका पूर्ण उपचार संभव है। बताया कि बालिकाओं व महिलाओं को अधिकतम 26 वर्ष की उम्र तक बच्चेदानी के कैंसर की रोकथाम के लिए वेक्सीन लगाई जा सकती है। मगर 14 वर्ष से अधिक उम्र में वेक्सिनेशन अपेक्षाकृत कम असरकारक होता है।

बताया कि विश्व स्वास्थ्य संगठन ने वर्ष 2030 तक महिलाओं में बच्चेदानी के कैंसर को समाप्त करने के लिए 90 प्रतिशत तक बालिकाओं में अनिवार्य वेक्सिनेशन और 70 प्रतिशत महिलाओं में इस कैंसर से बचाव के लिए जीवन में 35 से 45 वर्ष की उम्र के बीच कम से कम दो बार सर्विक्स कैंसर की विशेषज्ञ चिकित्सक से जांच का लक्ष्य निर्धारित किया है। उनका कहना है कि इस बीमारी की रोकथाम के लिए 9 से 14 वर्ष से कम उम्र की बालिकाओं में वेक्सीन की एक डोज ही पर्याप्त होती है।

एम्स के महिला रोग विभाग की कैंसर विशेषज्ञ डा. शालिनी राजाराम ने बताया कि भारत में प्रतिवर्ष सर्विक्स कैंसर के करीब एक लाख मामले सामने आते हैं। उन्होंने बताया कि करीब 10 वर्ष पूर्व देश में सर्वाधिक मामले महिलाओं की डिलीवरी के समय मृत्युदर के आते थे, जिसमें प्रतिवर्ष करीब 72 हजार का आंकड़ा था, मगर सरकार की ओर से इसे रोकने के लिए विघ्भिन्न स्तर पर जनजागरुकता मुहिम चलाई गई, जिससे इस तरह की मृत्युदर में काफी कमी आई है।

कार्यक्रम में इसके अलावा एनएचएम, उत्तराखंड की निदेशक डा. अंजलि नौटियाल व नेशनल प्रोग्राम मेडिकल हेल्थ एंड फेमिली वैलफेयर, उत्तराखंड की निदेशक डा. सरोज नैथानी भी प्रतिभाग करेंगी।
यह हैं महिलाओं में बच्चेदानी के कैंसर के लक्षण-
महिलाओं की बच्चेदानी से रक्तस्राव, महिलाओं में संभोग के बाद बच्चेदानी से खून आना, बच्चेदानी से बदबूदार पानी का निकलना आदि। ऐसे लक्षण पाए जाने पर महिलाओं को तत्काल अस्पताल में इसकी जांच करानी चाहिए व विशेषज्ञ चिकित्सका का परामर्श लेना चाहिए, साथ ही सर्विक्स कैंसर की रोकथाम के लिए वेक्सीन अनिवार्यरूप से लगानी चाहिए।

एम्स प्रशासन ने अस्थमा रोगियों को किया अलर्ट, दिए आवश्यक सुझाव

अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान ऋषिकेश ने शीतकाल के मद्देनजर अस्थमा रोगियों को विशेष सावधानी बरतने का सुझाव दिया है। संस्थान के पल्मोनरी मेडिसिन विभाग के विशेषज्ञ चिकित्सकों का कहना है कि ठंड और कोहरे की यह समस्या सबसे अधिक अस्थमा रोगियों के लिए नुकसानदेय है। ऐसे में अस्थमा रोगियों को विशेष सतर्कता बरतने की आवश्यकता है।

निदेशक प्रो. रविकांत ने बताया कि नियमततौर पर मास्क लगाने से कोरोना से तो बचाव होगा ही, साथ ही मास्क का उपयोग अस्थमा रोगियों के लिए ठंडी हवा से रोकथाम में भी बेहतर विकल्प साबित होगा। बताया कि ठंड और कोहरे के कारण वायुमंडल में जल की बूंदें संघनित होकर हवा के साथ मिल जाती हैं। यह हवा जब सांस के माध्यम से शरीर के भीतर प्रवेश करती है, तो सांस की नलियों में ठंडी हवा जाने से उनमें सूजन आने लगती है। ऐसे में अस्थमा के रोगी गंभीर स्थिति में आ जाते हैं। उन्होंने मास्क के इस्तेमाल को इस समस्या से बचने का सबसे बेहतर उपाय बताया।

पल्मोनरी मेडिसिन विभागाध्यक्ष डा. गिरीश सिंधवानी ने बताया कि अस्थमा किसी भी व्यक्ति को और किसी भी उम्र में हो सकता है। लेकिन समय पर इसके लक्षणों की पहचान होने से इस पर नियंत्रण किया जा सकता है। उन्होंने बताया कि यह रोग संक्रमण से नहीं फैलता है यह एलर्जी से होने वाली बीमारी है। जुकाम और बार-बार आने वाली छींकों से उत्पन्न यह एलर्जी जब नाक व गले से होते हुए छाती में फेफड़ों तक पहुंचती है तो अस्थमा का रूप ले लेती है। डा. सिंधवानी के अनुसार अस्थमा रोगियों को रात के समय अधिक दिक्कत होती है। उन्होंने बताया कि इस मर्ज का समय पर उपचार नहीं कराने से मरीज की सांस फूलने लगती है और दम घुटने के कारण उसे अस्थमा अटैक पड़ जाता है।
डा. सिंधवानी ने सुझाव दिया कि अस्थमा के रोगी नियमिततौर से दवा लेना नहीं भूलें। उन्होंने आगाह किया कि बीच-बीच में दवा छोड़ने से यह बीमारी घातकरूप ले लेती है। बताया कि लोगों में भ्रांति है कि इनहेलर का उपयोग केवल संकट के समय ही किया जाता है। जबकि यह तर्क पूरी तरह से गलत है। विशेषज्ञ चिकित्सक ने बताया कि इनहेलर का उपयोग अस्थमा के रोगी को नियमिततौर से करना चाहिए। इस बीमारी में इनहेलर सबसे उत्तम उपाय है। इससे बचना, नुकसानदेह होता है। उन्होंने बताया कि ऋषिकेश एम्स में इस बीमारी की सभी तरह के परीक्षण व उपचार की बेहतर सुविधाएं उपलब्ध हैं।

यह हैं अस्थमा के प्रमुख लक्षण-
खांसी, जुकाम, छींकें आना, सांस फूलना, सांस लेते समय सीटी जैसी आवाज आना आदि।

यह है अस्थमा रोग को बढ़ाने वाले कारक-
ठंड, कोहरा, धुंध, धुवां, धूल, प्रदूषण, संक्रमण, पेंट की गंध, परागकण। इसके अलावा बंद घरों के भीतर रहने वाले पालतू कुत्ते और बिल्लियों के बालों से भी अस्थमा मरीजों की परेशानियां बढ़ जाती हैं।

इस तरह अस्थमा से बचाव का उपाय-
फ्रिज का पानी, ठंडी और बासी चीजों का सेवन कदापि नहीं करें। सर्दी से बचाव के सभी जरुरी उपाय जैसे गर्म कपड़े पहनना, धूप आने से पहले बाहर नहीं निकलना, कमरों के भीतर बैठने के बजाय धूप में बैठना आदि को अपनी दिनचर्या में शामिल करें। धूप में विटामिन डी प्रचुर मात्रा में होता है और यह जनरल बूस्टर का कार्य करते हुए शरीर की इम्यूनिटी क्षमता को बढ़ाता है। इसके अलावा ग्रसित मरीज दवा का सेवन नियमित तौर पर करें।

एम्स ऋषिकेश में स्त्री वरदानः चुप्पी तोड़ो, नारीत्व से नाता जोड़ो अभियान की नींव रखी


अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान ऋषिकेश की ऐतिहासिक पहल पर महिलाओं की गुप्त रोगों से जुड़ी जटिल समस्याओं को लेकर सम्मेलन हुआ। संस्थान के रिकंस्ट्रक्टिव एंड कॉस्मेटिक गाइनोकॉलोजी विभाग द्वारा स्त्री वरदान चुप्पी तोड़ो नारीत्व से नाता जोड़ो कार्यक्रम की नीव रखी। सम्मेलन में उत्तराखंड के लगभग सभी जिलों से 50 से अधिक स्वयं सेविका महिलाओं ने प्रतिभाग किया। उन्होंने मुहिम को गांव-गांव-घर घर तक पहुंचाने व राज्य की प्रत्येक महिलाओं को उनकी समस्याओं को लेकर जागरुक करने व ग्रसित महिलाओं को उपचार के लिए प्रेरित करने की शपथ भी दिलाई।

एम्स निदेशक व सीईओ प्रो. रविकांत ने अपने संदेश में बताया कि यह सम्मेलन महिलाओं के गुप्त रोगों से जुड़ी समस्याओं के निदान की दिशा में पहला कदम है, जिसका उद्देश्य भारत की हर महिला को ऐसी समस्याओं को लेकर जागरुक करना हो व उन महिलाओं तक पहुंचकर एम्स ऋषिकेश की सुपरस्पेशलिटी सेवाओं से उन्हें स्वास्थ्य लाभ दिलवाना है। कार्यक्रम में रिकंस्ट्रक्टिव और कॉस्मेटिक गाइनोकॉलोजी विभागाध्यक्ष डॉ. नवनीत मग्गो ने बताया कि महिलाओं के स्वास्थ्य से जुड़ी यह अपनी तरह की पहली मुहिम है, जिसे निदेशक की पहल पर उनकी अगुवाई में शुरू किया जा रहा है।

महिलाओं से आह्वान किया कि हमें इस मुहिम में उन महिलाओं से बात करनी है, जो महिलाएं या तो वह संकोच के मारे बात नहीं कर पाती अथवा समाज उन महिलाओं के स्वास्थ्य संबंधी मुद्दों को नजरअंदाज कर देता है।

इस दौरान डॉ. नवनीत ने प्रतिभागी सेविकाओं को महिलाओं के यूरिनरी इनकांटिनेस उनकी यौन समस्याएं और उनके यौन अंग या शरीर बाहर आने की समस्याओं पर विस्तृत जानकारियां दी व इस तरह की बीमारियों से शरीर को होने वाले दूसरे तरह के नुकसान को लेकर जागरुक किया। उन्होंने कहा कि हम सभा को मिलकर यह संकल्प लेना होगा कि अगले 5 वर्ष के अंदर उत्तराखंड राज्य को यूरिनरी इनकांटीनेंस फ्री यानी यूरिनरी इनकांटीनेंस से मुक्त करना है। गौरतलब है कि एम्स का रिकंस्ट्रक्टिव और गाइनोकॉलोजी विभाग पूरे विश्व में अपनी तरह का पहला सुपरस्पेशलिटी विभाग है, जिसमें कि विश्व के सर्वश्रेष्ठ चिकित्सकों को नियुक्त किया गया है।

एम्स में भर्ती 1600 से अधिक कोविड रोगी हुए स्वस्थ्य

अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान ऋषिकेश में 90 वर्षीय बुजुर्ग महिला से कोरोना हार गया है। जी हां, यहां कोरोना संक्रमित होने के बाद से बुजुर्ग महिला को भर्ती किया गया था। अब वह पूरी तरह से स्वस्थ होकर घर लौट गई है।

एम्स निदेशक प्रो. रविकांत ने कहा कि निर्धन व्यक्ति को समुचित और बेहतर मेडिकल सुविधा देने के लिए एम्स प्रतिबद्ध है। जिस वक्त कोविड चरम पर था और अन्य अस्पताल कोविड रोगियों का इलाज करने में असमर्थता जाहिर कर रहे थे, उस दौरान कोविड मरीजों का इलाज करने में एम्स ने प्राथमिकता रखी। कहा कि कोविड मरीजों के इलाज के लिए एम्स में पर्याप्त मात्रा में बैड, आईसीयू और वेंटिलेटर्स का प्रबंध किया गया है। हेल्थ केयर वर्करों की सराहना करते हुए कहा कि कोरोना संक्रमित मरीजों की जान बचाने के लिए हेल्थ केयर वर्कर्स की टीम ने जोखिम उठाते हुए दिन-रात अपनी जिम्मेदारी निभाई है।

डीन हॉस्पिटल अफेयर्स प्रो. यूबी मिश्रा ने बताया कि एम्स में कोविड काल शुरू होने के बाद से अब तक 1600 से अधिक कोविड मरीज ठीक होकर घर लौट चुके हैं। इन मरीजों में 90 साल की वृद्ध महिला से लेकर 1 दिन का नवजात शिशु तक का मरीज शामिल हैं। उन्होंने बताया कि 90 साल की वृद्धा मूलरूप से टिहरी गढ़वाल जिले के कीर्तिनगर विकासखंड के अंतर्गत मूलधार गांव की निवासी है। कोविड पाॅजिटिव इस वृद्धा को बीती 8 सितम्बर को एम्स में भर्ती किया गया था। इसे पहले से अस्थमा की बीमारी की शिकायत थी और कोरोना संक्रमित होने के बाद इसे सांस लेने में अत्यधिक तकलीफ हो रही थी। 17 दिनों तक अस्पताल में रहने के बाद पूर्ण स्वस्थ होने पर इसे 25 सितम्बर को डिस्चार्ज कर दिया गया था।

कहा कि कोविड मरीजों का ग्राफ कुछ कम हुआ है, लेकिन इसका खतरा अभी टला नहीं है। इस बीमारी के प्रति जरा सी लापरवाही फिर से भारी पड़ सकती है। उधर, 90 वर्षीय वृद्धा मौली देवी के पौत्र चैदहबीघा, ऋषिकेश निवासी दीपक कंडारी ने बताया कि उनकी दादी आजकल गढ़वाल में है और पूर्णतौर से स्वस्थ है। अपनी दादी के बेहतर उपचार के लिए उन्होंने एम्स ऋषिकेश के विशेषज्ञ चिकित्सकों का आभार जताया।

अमेरिकी सोसाइटी ने ऋषिकेश एम्स को दिया अनुदान, रक्त कैंसर पर होंगे रिसर्च

अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान ऋषिकेश को अमेरिकन सोसायटी ऑफ हेमेटोलॉजी से ब्लड कैंसर पर अनुसंधान के लिए अनुदान मिला है, जिस पर संस्थान के हेमेटोलॉजी विभाग के विशेषज्ञ चिकित्सक रिसर्च का कार्य जल्द शुरू करेंगे। एम्स ऋषिकेश भारत देश की ऐसी पहली संस्था है जिसे यह अनुदान ग्रांट मिली है, रक्त कैंसर पर अनुसंधान को बढ़ावा देने वाली अमेरिकन सोसायटी की ओर से अब तक देश के किसी भी मेडिकल संस्थान को यह ग्रांट नहीं दी है।
गौरतलब है कि भारत में दुनिया के मुकाबले रक्त कैंसर के रोगियों की मृत्यु दर अधिक है। जिसका सबसे मुख्य वजह कैंसर के शरीर में दोबारा लौटना भी है, साथ ही जानकार इसकी एक वजह देश में रक्त कैंसर के प्रति लोगों में जनजागरुकता का अभाव को भी मानते हैं। ऐसे कई कारण हैं जिनके बारे में वैज्ञानिक मानते हैं कि किसी व्यक्ति के पहली बार कैंसर ग्रसित होने पर उसे खत्म करने के लिए जो दवा अथवा कीमोथेरेपी दी जाती है, वह उसी व्यक्ति में कैंसर के दोबारा लौटने की स्थिति में अपेक्षाकृत प्रतिरोधक नहीं होती, जिससे व्यक्ति की मृत्यु की संभावनाएं बढ़ जाती है।
उनका मानना है कि कैंसर के दूसरी बार व्यक्ति में आने पर कैंसर सेल में कई तरह के बदलाव आते हैं, मसलन जीन म्यूटेशन, चेंज इन द माइक्रो इन्वायरमेंट आदि। लिहाजा ऐसी स्थिति में पीड़ित व्यक्ति को पूर्व में दी गई दवा अथवा उपचार काम नहीं कर पाता है।

एम्स निदेशक प्रो. रविकांत ने बताया कि संस्थान को इस अंतर्राष्ट्रीय अमेरिकन सोसायटी ऑफ हेमेटोलॉजी द्वारा दिए गए अनुदान से रक्त कैंसर रिसर्च में नए विषयों पर अनुसंधान किया जाएगा। उन्होंने बताया कि इस विषय में रिसर्च के दौरान एम्स के अनुसंधान कर्ताओं का फोकस कीमो रिस्टेन्सेंस कोशिकाओं द्वारा प्राप्त अंतर आणविक परिवर्तनों को समझने पर रहेगा। इस अनुसंधान के लिए जिनोमिक्स, प्रोटियोमिक्स और क्रिस्पर जैसी तकनीकियों का प्रयोग किया जाएगा।

बताया कि यह अध्ययन कीमोथैरेपी प्रतिरोधी रोगियों के लिए कुछ नए चिकित्सीय पद्धतियों के आविष्कार में मदद करेगा। बताया गया कि एम्स संस्थान में इस परियोजना का नेतृत्व मेडिकल ओंकोलॉजी एंड हेमेटोलॉजी विभाग के असिस्टेंट प्रोफेसर डा. नीरज जैन करेंगे। जो कि डीबीटी रामलिंगस्वामी फैलोशिप प्राप्त हैं।

विभाग प्रमुख डा. नाथ ने बताया कि यह अनुदान भारत में पहली बार एम्स संस्थान के रक्त कैंसर अनुसंधान विशेषज्ञ डा. नीरज जैन को प्राप्त हुआ है। जिसके लिए उन्होंने सोसायटी से रक्त कैंसर पर अनुसंधान के लिए आवेदन किया था।
बताया गया है कि इस रिसर्च परियोजना को ढाई वर्ष में पूर्ण किया जाएगा। जिसके लिए अमेरिकन सोसायटी की ओर से डेढ़ लाख डॉलर (1.10 करोड़) की स्वीकृति प्रदान की गई है। संस्थान की डीन रिसर्च प्रो. वर्तिका सक्सैना ने जानकारी दी कि संस्थान उच्च गुणवत्ता वाले चिकित्सा अनुसंधान करने के लिए निरंतर प्रयासरत है। जिसके लिए एम्स में विभिन्न विस्तृत अनुसंधान प्रयोगशालाओं की स्थापना की जा रही है।

ऋषिकेश एम्स पर हेलीपैड का शुभारंभ, नौ मिनट के अंदर एंबुलेंस से ट्रामा सेंटर जाने की व्यवस्था

मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत ने अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) ऋषिकेश के नव निर्मित हेलीपैड का उद्घाटन किया। उन्होंने कहा कि एम्स ऋषिकेश परिसर में हेलीपैड बनने से गंभीर रोगियों एवं दुर्घटना होने पर घायलों को हेली सेवा से अस्पताल लाने में सुविधा होगी। एम्स ऋषिकेष में इसके लिए प्रशिक्षण भी दिया गया है। हेली से उतरने के बाद मरीज को मात्र 09 मिनट में एम्बुलेंस से ट्रामा सेंटर तक पहुंचने की व्यवस्था रहेगी।

मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र ने कहा कि पर्वतीय राज्य होने के कारण उत्तराखण्ड की भौगोलिक परिस्थितियां अलग है। अतिवृष्टि होने पर राज्य में आपदायें अधिक होती हैं। पहाड़ी टेरिन होने से दुर्घटनाएं भी अधिक होती है। दुर्घटना होने पर लोगों को हेली सेवा से उपचार के लिए जल्द एम्स लाने में सुविधा होगी। उन्होंने कहा कि पिछले 03 सालों में प्रदेश में 100 से अधिक लोगों की जान हेली सेवा से सीधे अस्पतालों में लाकर बचाई गई। इसके लिए सरकारी हेलीकॉप्टर एवं किराये पर हेलीकॉप्टर की व्यवस्था की।

उन्होंने कहा कि एम्स ऋषिकेश देश का पहला ऐसा संस्थान है, जहां परिसर के अन्दर हेलीपैड की सुविधा है। मुख्यमंत्री ने एम्स के डॉक्टरों को संबोधित करते हुए कहा कि कोरोना काल में सीनियर डॉक्टर कोरोना के मरीजों का विशेष ध्यान रखें। जिस तरह कोरोना अपना स्वरूप बदल रहा है, यह चिन्ता का विषय है। उन्होंने कहा कि प्रशासन, पुलिस एवं डॉक्टरों के आपसी तालमेल से समस्याओं का समाधान आसानी से किया जा सकता है। कोरोना काल में आशा, आंगनबाड़ी, नर्स एवं डॉक्टर और स्वच्छता कर्मचारी जो ग्राउण्ड लेबल पर कार्य कर रहे हैं, वे जनता के लिए देवदूत के रूप में कार्य कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि मरीजों को परीक्षण के साथ ही मनोवैज्ञानिक तरीके से भी मजबूत रखना जरूरी है। एम्स ऋषिकेश की पहुंच दुर्गम स्थानों के मराजों तक होनी चाहिए। सेवा सार्थक तभी होती है, जब सेवा गरीबों तक पहुंचे। इस अवसर पर एम्स ऋषिकेश के डॉक्टरों ने हेलीसेवा से मरीज को लाने एवं एम्बुलेंस से ट्रामा सेंटर तक ले जाने की प्रक्रिया का मॉक ड्रिल भी किया।

एम्स ऋषिकेश में उत्तरकाशी की महिला ने दिया चार बच्चों को जन्म

ऋषिकेश के गाइनी डिपार्टमेंट में भर्ती उत्तरकाशी निवासी महिला ने चार बच्चों को जन्म दिया है। महिला को उत्तरकाशी जिला अस्पताल से दून अस्पताल रेफर किया गया था, हाई रिस्क केस होने की वजह से महिला को बीते रविवार को दून अस्पताल से एम्स ऋषिकेश में रेफर किया गया था।

गाइनी विभाग की डा. अनुपमा बहादुर के अनुसार महिला का हिमोग्लोबिन काफी कम था, टीएसएच 13 था, लिहाजा ऐसी स्थिति में डिलीवरी में नवजात शिशु आईसीयू नीकु की आवश्यकता पड़ सकती थी, लिहाजा दून में यह सुविधा उपलब्ध नहीं होने के कारण उसे एम्स भेजा गया था। जहां अल्ट्रासाउंड के जरिए पता चला कि महिला के पेट में चार बच्चे हैं। लिहाजा महिला को तीन यूनिट रक्त चढ़ाया गया। साथ ही बच्चों के फेफड़ों की मैच्योरटी के लिए महिला को इंजेक्शन लगाया गया। इसके बाद ऑपरेशन से शनिवार को दोपहर में महिला ने चार बच्चों को जन्म दिया। जिनमें दो लड़के व दो लड़कियां हैं। चिकित्सकों के अनुसार सभी बच्चे स्वस्थ हैं। जिनका वजन क्रमशरू 1.6 किग्रा, 1.5 किग्रा., 1.35 किग्रा. तथा 1.1 किलोग्राम है।

खासबात यह है कि उन्हें वेंटीलेटर की आवश्यकता नहीं पड़ी। हाईरिस्क केस होने की वजह से चिकित्सकों के दल में नवजात शिशु विभाग की विभागाध्यक्ष डा. श्रीपर्णा बासू व डा. पूनम व गाइनी विभाग की प्रमुख डा. जया चतुर्वेदी, डा. अनुपमा बहादुर व डा. राजलक्ष्मी मुंदरा शामिल थे। एम्स निदेशक पद्मश्री प्रोफेसर रवि कांत जी ने बताया कि एम्स ऋघ्षिकेश उत्तराखंड में नवजात शिशु मृत्युदर कम करने को लेकर गंभीर है, लिहाजा हम हाईरिस्क प्रेग्नेंसी के मामलों को प्राथमिकता देते हैं। एम्स निदेशक प्रो. रवि कांत ने बताया कि इसके लिए संस्थान में सभी विश्वस्तरीय वार्ड, संसाधन, उपकरण एवं विशेषज्ञ चिकित्सक उपलब्ध हैं।

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