कैग ने खोली भारतीय रेला सेवा की पोल!

नियंत्रक महालेखा परीक्षक (कैग) ने रेल मंत्रालय पर गंभीर आरोप लगाते हुए स्टेशनों व ट्रेनों में परोसा जाने वाला खाना यात्रियों के खाने योग्य नहीं बताया है। रिपोर्ट में कहा गया है कि रेलवे के खाने में कीलें निकली। पेंट्रीकार में चूहे एवं काकरोच पाए गए।
इससे अधिक गंभीर बात यह है कि रेलवे ही ठेकेदारों को घटिया, बासी, कम मात्रा और अधिक दरों पर खाना देने के लिए मजूबर करती है। यात्रियों को ब्रांडेड के बजाए दूसरी कंपनियों का बोलतबंद पानी दिया जाता है। इतना ही नहीं 22 ट्रेनों में पेय, काफी, चाय और शूप तैयार करने में सीधे नल से आ रहे अशुद्ध जल का उपयोग किया जा रहा है।
कैग ने शुक्रवार को संसद में पेश अपनी रिपोर्ट में कहा है कि रेलवे की खानपान सेवाओं की कलई खोल दी है। कैग ने रेलवे अफसरों के साथ संयुक्त जांच में पाया कि खाना बनाने में साफ सफाई का ध्यान नहीं रखा जाता। बेस किचन व पेंट्रीकार कॉकरोच-चूहे घूमते हैं। लखनऊ-आनंद विहार डबल डेकर (ट्रेन नंबर 12583) में एक यात्री के कटलेट में खाते समय कील निकली। इसी प्रकार एक अन्य ट्रेन कानपुर दिल्ली शताब्दी की शिकायत पुस्तक में भी खाने में कील निकलने की शिकायत दर्ज है। दुरंतो एक्सप्रेस ट्रेनों (ट्रेन नंबर 12260 व 12269) में कॉकरोच व चूहे देखे गए। इसी प्रकार जांच के दौरान वेलकम ड्रिंक को नल के पानी से बनाते हुए देखा गया।
कैग ने कहा कि खाने की रसीद यात्रियों को नहीं दी जाती है। ट्रेनों की कोच में मैन्यू नहीं लगया जाता है जिससे खाने की दरें व मात्रा पता चल सके। यात्रियों को घटिया खाना कम मात्रा में परोसा जाता है, और तय मूल्य से अधिक पैसा लिया जाता है। यह स्थिति यात्री ट्रेनों व रेलवे स्टेशनों दोनो जगह की बनी हुई है।
रेलवे खानपान की गुणवत्ता की जांच और नियंत्रण प्रभावी ढ़ग से लागू करने में विफल साबित हुआ है। रेलवे बोर्ड से लेकर जोनल रेलवे तक शिकायत प्रणाली व्यवस्था लागू की गई, लेकिन इनकी संख्या में कमी नहीं आ रही है। कैग ने रिपोर्ट में कहा है कि खानपान नीति में बार बार परिर्वतन कर आईआरसीटीसी से लेने और फिर देने के फैसले से खानपान व्यवस्था बुरी तरह से प्रभावित हुई है। 2010 से इसका खामियाजा यात्रियों को भुगतना पड़ रहा है।
कैग व रेलवे के संयुक्त जांच में पाया गया कि जोनल रेलवे ने मास्टर प्लान बनाकर सभी स्टेशनों व ट्रेनों में खानपान आपूर्ति की ठीक प्रकार से निगरानी नहीं की। लंबी दूरी की ट्रेनों में पेंट्रीकार नहीं थी। ट्रेनों में खाना आपूर्ति के लिए रेलवे मात्र तीन फीसदी बेस किचन का प्रयोग करती है, शेष बेस किचन कैटरिंग ठेकेदारों द्वारा रेल परिसर से बाहर बनाया जाता है। यहां रेलवे का निगरानी तंत्र नहीं है। इसलिए खाना बनाने की गुणवत्ता, बेस किचन की साफ सफाई, कम मात्रा में खाना पैक करना आदि अनियमितताएं होती है।
रेलवे ने बेस किचन, कैटरिंग यूनिट, विशिष्ठ बेस किचन जैसे फूड प्लाजा, फूड कोर्ट, फास्ट फूड यूनिट, ट्रेन साइड वेडिंग लगाने की दिशा में ठोस काम नहीं किया। कैग ने सिफारिश की है कि आईआरसीटीसी को खानपान सेवा को देने के नियम को सरल बनाया जाना चाहिए। पेंट्रीकार में गैस बर्नर के स्थान पर इलेक्ट्रिकल चूल्हा लगाना चाहिए।

अधीनस्थ सेवा चयन आयोग ने गुपचुप तरीके से गजट नोटिफिकेशन जारी किया

देहरादून।
समूह ‘ग’ की परिधि में आने वाले ग्राम्य विकास विभाग में ग्राम विकास अधिकारी और ग्राम पंचायत अधिकारी के पदों पर निर्धारित योग्यता तकनीकी तरीके से बढ़ा कर पहाड़ के युवाओं को इन पदों से दूर करने का षडयत्र उजागर हुआ है। इसके लिए योग्यता में बदलाव लाने वाले प्रावधानों को गुपचुप तरीके से गजट नोटिफिकेशन भी जारी कर दिया गया है। निकट भविष्य में अधीनस्थ सेवा चयन आयोग के पास ग्राम विकास अधिकारी और ग्राम पंचायत अधिकारी के सैकड़ों पदों का अधियाचन पहुंचा है। इन पदों से सीधे तौर पर पहाड़ में पढ़ने वाले अधिकांश छात्र बाहर हो जाएंगे।
ग्राम्य विकास अधिकारी के जिन पदों पर अब तक इंटरमिडिएट अर्हता थी। अब उसे स्नातक कर दिया गया है। स्नातक में भी कृषि, विज्ञान, अर्थशास्त्र, कामर्स होना अनिवार्य है। पहाड़ों में विज्ञान के शिक्षकों का नितांत अभाव है, इसलिए जो विज्ञान पढ़ता है मैदानों में ही आता है। इंटरमिडिएट में कृषि विषय किसी भी पहाड़ के इंटर कालेज में नहीं है, यही स्थिति कामर्स की भी है। इस तरह ग्राम्य विकास अधिकारी के लिए इस तरह की अर्हता तय कर पर्वतीय क्षेत्र के अभ्यर्थियों को सीधे तौर पर इससे बाहर का रास्ता दिखा दिया गया है।
इसके लिए बाकायदा गजट नोटिफिकेशन जारी कर दिया गया है। निकट भविष्य में अधीनस्थ सेवा चयन आयोग ग्राम विकास अधिकारी के 400 से अधिक पदों पर भर्ती करने का जा रहा है। इन पदों की भर्ती के लिए यह नई अर्हता लागू हो जाएगी। इसका मतलब यह है कि पहाड़ के इंटर कालेजों में पढ़ने वाले छात्र छात्राए इन पदो के लिए पहली ही सीढ़ी में अनर्ह हो जाएंगे। क्योंकि इंटर में जिन छात्रों के पास कृषि, विज्ञान, अर्थशास्त्र, कामर्स विषय होंगे वही ग्रेज्युयेशन में इन विषयों के साथ पढ़ेगा। पहाड़ से इंटर मिडिएट करके आने वाला छात्र इन विषयों को कैसे पढ़ पाएगा?
उत्तराखंड के निवासियों की भर्ती के लिए अधीनस्थ सेवा चयन आयोग का गठन किया गया था। जो राज्य गठन के पंद्रह साल बाद हो पाया। अब इस आयोग के दायरे में आने वाले सबसे अधिक पदों पर इस तरह की अर्हता लगाकर एक क्षेत्र विशेष के लोगों को बड़ी चोट पहुंचाने की कोशिश की जा रही है।
गौरतलब है कि उत्तराखंड अधिकांश मामलों में उत्तर प्रदेश की नकल करता रहा है। जबकि उत्तर प्रदेश में परंपरा रही है कि यदि किसी पद की योग्यता में बदलाव करना आवश्यक हो तो उसके लिए बाकायदा कमेटी का गठन किया जाता है। कमेटी इसके समाज के सभी वर्गों में पढ़ने वाले प्रभावों का आंकलन करती है, साथ ही कई बार जन सुनवाई कर जन सामान्य के पक्ष को भी सुना जाता रहा है। इसके बाद ही योग्यता में परिवर्तन किया जाता है। उत्तराखंड में कुछ अधिकारी अपनी मानसिकता थोपकर इस तरह के निर्णय ले रहे हैं। चुपचाप गजट नोटिफिकेशन जारी कर परीक्षा के ठीक पहले उसे सामने लाया जा रहा है, ताकि प्रभावित पक्ष को इसका विरोध करने का भी मौका तक न मिले। एक क्षेत्र विशेष के युवाओं को टारगेट कर ग्राम विकास अधिकारी और ग्राम पंचायत अधिकारी के पदों से पूरी तरह उन्हें दरकिनार करने की यह कार्यवाही निंदनीय है। गौरतलब है कि इस पदों पर अर्हताएं शासन स्तर पर तय होती हैं, अधीनस्थ सेवा चयन आयोग इसे लागू करता है।

अलग झंडे की मांग पर सिद्धारमैया ने कांग्रेस की मुश्किलें बढ़ाई

कर्नाटक में सरकार ने राज्य के लिए स्टेट फ्लैग के लिए कवायद शुरू की है। सीएम सिद्धारमैया ने इसके लिए 9 मेंबर्स की कमेटी बनाई है, जो झंडे के डिजाइन और इसके कानूनी पक्ष तय करेगी। मीडिया में खबरें आने के बाद बीजेपी-शिवसेना ने इसका विरोध शुरू कर दिया। सरकार का दावा है कि इस झंडे को कर्नाटक की खास पहचान के तौर पर देखा जाएगा। संविधान विशेषज्ञों के अनुसार, संविधान में अगल से झंडे का कोई प्रावधान नहीं है, यहां सिर्फ राष्ट्रध्वज हो सकता है। केंद्रीय गृह मंत्रालय ने भी सिद्धारमैया सरकार के प्रस्ताव को खारिज कर दिया है। बता दें कि, जम्मू-कश्मीर को छोड़कर देश के किसी भी राज्य के पास खुद का झंडा नहीं है। आर्टिकल 370 के तहत जम्मू-कश्मीर को खास राज्य का दर्जा मिला हुआ है।

इन पर भी दे ध्यान…
स्टेट फ्लैग के लिए बनाई कमेटी जल्द ही राज्य की कांग्रेस सरकार को रिपोर्ट सौंपेगी। अगर, सिद्धरमैया कर्नाटक का झंडा बनाने में कामयाब हुए तो इससे उन्हें 2018 के असेंबली इलेक्शन में फायदा हो सकता है।
सरकार ने 6 जून को कमेटी बनाने के लिए ऑर्डर जारी किया था। इसमें कन्नड़ और कल्चर डिपार्टमेंट के प्रिंसिपल सेक्रेटरी को कमेटी का चेयरपर्सन बनाया गया।
2012 में राज्य में बीजेपी की सरकार थी। तब सरकार ने कहा था कि इससे देश की एकता और अखंडता के लिए खतरा हो सकता है। कन्नड़ कम्युनिटी की आवाज बुलंद करने वाले कुछ संगठन अलग झंडे की मांग कर रहे थे। बता दें कि कर्नाटक में पिछले दिनों हिन्दी का भी विरोध हो रहा था। लोगों ने हिन्दी के बोर्ड हटाए थे।
बता दें कि कर्नाटक के फाउंडेशन डे पर हर 1 नवंबर को राज्य के गली-चौराहों पर लाल और पीले रंग का कन्नड़ फ्लैग लगाया जाता है। इसे कन्नड़ एक्टिविस्ट वीरा सेनानि एम. राममूर्ति ने 1960 में डिजाइन किया था। इसे भारत सरकार की मान्यता नहीं मिली है।

शिक्षकों के अप-डाउन पर सरकार की सख्ती


स्कूलों में शिक्षकों की उपस्थिति सुनिश्चित करने के लिए बायोमैट्रिक हाजिरी की व्यवस्था करने के बाद अब सरकार को शिक्षकों का दूर से रोज अप-डाउन करना अखर रहा है।
इसके लिए शिक्षा विभाग पांच दशक पुराने मानक की पोथी खोल चुका है। इसके मुताबिक शिक्षक स्कूल के आठ किमी. के दायरे से ही अप-डाउन कर सकेंगे। शिक्षा महानिदेशक कैप्टल आलोक शेखर ने इस संबंध में निर्देश जारी कर मुख्य शिक्षाधिकारियों से रिपोर्ट तलब की है।
शिक्षक स्कूल के आठ किमी. के दायरे में रह रहे हैं या नहीं इसकी पुष्टि एलआईयू से भी कराई जाएगी। सरकार के इस निर्णय पर सवाल खड़े हो रहे हैं। सवाल उठ रहा है कि बायोमैट्रिक हाजिरी के बाद इस निर्णय का क्या औचित्य है।
शिक्षक समय से स्कूल पहुंचे और समय से ही स्कूल को छोड़े ये ज्यादा महत्वपूर्ण है। बायोमैट्रिक हाजिरी इसके लिए पर्याप्त है। ग्लोबल विलेज के दौर में विभाग की आठ किमी. की रट सरकार के विकास के दावों को भी कठघरे में खड़ा करती है।
जाहिर है कि ये निर्देश ये बता रहा है कि प्रदेश में रोड ट्रांसपोर्ट कनेक्टिविटी कमजोर है। यही वजह है कि डोईवाला में तैनात शिक्षक देहरादून से अप डाउन नहीं कर सकेंगे। हरिपुर में तैनात शिक्षक हरिद्वार तक अप डाउन नहीं कर सकेंगे। कीर्तिनगर और श्रीनगर के बीच अप डाउन नहीं होगा।

चारधाम यात्रा प्रतीक्षालय में अव्यवस्थायें हावी

ऋषिकेश।
रविवार को भी यात्री प्रतीक्षालय में तीर्थ यात्रियों को परेशानी का समाना करना पड़ा। कारण कि प्रतीक्षालय में बिजली उपकरण टूटे पड़े है। बिजली की तारें टूटने से पंखे व लाईट नही चल रहे है। मई माह में चारधाम यात्रा अपने पूरे सबाब पर है। देश विदेश से आने वाले श्रद्धालुओं की संख्या में दिन प्रतिदिन इजाफा हो रहा है। ऐसे में यात्रा बस कम्पाउंड में अव्यवस्थायें हावी होने से यात्रियों को परेशानी हो रही है।
इन दिनों एकाएक गर्मी अधिक होने से भी तीर्थयात्री प्रतीक्षालयों का रुख कर रहे है। प्रशासन चारधाम यात्रा में व्यवस्थायें दुरस्त करने का दावा कर रहा है। लेकिन हकीकत दावे कुछ ओर ही है। कुछ दिन पूर्व गढ़वाल कमिश्नर विनोद शर्मा ने चारधाम बस कम्पाउंड का निरीक्षण कर व्यवस्थाओं पर नाखुशी भी जाहिर की थी। लेकिन दो दिन बाद भी जिम्मेदार प्रशासन ने इस ओर कोई ध्यान नही दिया है।

लोकल रूट के यात्रियों को बसों के लिए भटकना पड़ रहा

ऋषिकेश।
चारधाम यात्रा के दौरान हर साल लोकल रूट के यात्रियों को परेशानी झेलनी पड़ती है। यात्रा में बसों के लगने से लोकल रूट पर बसों का संकट गहरा गया है। बामुश्किल ही लोकल रूट के लिए इक्का-दुक्का बसें मिल रही है। सुबह चार बजे से चलने वाली सर्विस भी बंद हो गई है। यात्रा के लिए आने वाले दिनों के लिए भी बसों की बुकिंग एडवांस हो चुकी है। ऐसे में आने वाले दिनों में लोकल रूट के यात्रियों को परेशानी उठानी होगी। गर्मियों की छुट्टी में लोग गांव जाते हैं। ऐसे में उन्हें गंतव्य तक जाने के लिए निजी संसाधनों का उपयोग करना होगा। रविवार को भी यात्री दिन भर बसों के लिए भटकते रहे। बस संचालन करने वाली कंपनियों ने बसों को चारधाम यात्रा में लगाया है। यात्री बस अड्डे से लेकर नटराज चौक तक भटकते रहे। नटराज से छोटे वाहनों का संचालन किया जाता है। छोटे वाहन भी यात्रा में लगे हुए हैं। यातायात व्यवस्था समिति के वरिष्ठ उपाध्यक्ष मनोज ध्यानी का कहना है कि उपलब्धता के आधार पर बसों का संचालन किया जा रहा है। यात्रा के कारण लोकल रूट प्रभावित हुए हैं। कोशिश की जा रही है कि लोकल यात्रियों को परेशानी न उठानी पड़े।

चारधाम यात्रा कम्पाउंड में अव्यवस्थाएं हावी

-तपती धूप में खड़े होकर श्रद्धालु करा रहे अपना पंजीकरण
-बजट के अभाव में मात्र 50 सफाई कर्मचारियों की हो पाई भर्ती
-जनरेटर से नहीं जोड़े गए पंखे और लाइट के कनेक्शन

ऋषिकेश।
चारधाम यात्रा के प्रवेश द्वार ऋषिकेश में श्रद्धालुओं के लिए व्यवस्थाएं चाक-चौबंद नहीं हैं। श्रद्धालुओं की संख्या बढ़ने से यात्रा अपने चरम पर लौटने लगी है लेकिन पंजीकरण कराने पहुंच रहे श्रद्धालु तपती धूप में खड़े होने को मजबूर हैं। जनरेटर से पंखे और लाइट के कनेक्शन नहीं जोड़े गए हैं। बजट का रोना रोकर पालिका प्रशासन व्यवस्थाओं को दुरुस्त करने से पल्ला झाड़ रहा है। चारधाम यात्रा की व्यवस्थाओं को लेकर गढ़वाल कमिश्नर ने चारधाम यात्रा कम्पाउंड का एक बार भी निरीक्षण नहीं किया है।
चारधाम यात्रा पर आने वाले श्रद्धालुओं की संख्या में दिन प्रतिदिन इजाफा हो रहा है लेकिन चारधाम यात्रा के प्रवेश द्वार ऋषिकेश में ही यात्रा की व्यवस्थाएं दुरस्त नहीं हैं। चारधाम यात्रा कम्पाउंड में तीर्थयात्रियों के लिए अभी तक टेंट नहीं लग पाया है। इसकी जगह पालिका प्रशासन ने एक छोटा टेंट जरूर लगा रखा है लेकिन बढ़ती भीड़ के आगे वह नाकाफी नजर आ रहा है। इसके चलते पंजीकरण करा रहे श्रद्धालुओं को तपती धूप में लाइन लगाकर पंजीकरण कराना पड़ रहा है।
कमोबेश यही हाल बिजली चले जाने पर हो रहा है। यात्री विश्राम गृह और पंजीकरण काउंटरों के बाहर लगाए गए पंखों का कनेक्शन जनरेटर से नहीं जोड़ा गया है। इसके चलते श्रद्धालु गर्मी से बेहाल रहते हैं। यात्रा काल में नगर की साफ-सफाई चाक चौबंद रखने के लिए सफाई कर्मचारियों की भर्ती की जानी थी लेकिन इसके लिए 70 कर्मचारियों के सापेक्ष मात्र 50 कर्मचारियों की ही भर्ती हो पाई है। गौरतलब है कि चारधाम बस कम्पाउंड में व्यवस्थाए दुरुस्त करने की जिम्मेदारी पालिका प्रशासन के पास है। लेकिन बजट का रोना रोकर पालिका अपना पल्ला झाड़ रही है।
पालिका के अधिशासी अधिकारी वीपीएस चौहान का कहना है कि शासन को चारधाम यात्रा की व्यवस्थाएं दुरुस्त करने के लिए 67.55 लाख का बजट मांगा गया था लेकिन मात्र 15 लाख रुपये ही जारी किए गए हैं। अब जितना बजट होगा व्यवस्थाएं भी उतनी ही दुरुस्त हो पाएंगी।

देहरादून की पहली बस सात बजे से पहले नही

ऋषिकेश।
ऋषिकेश डिपो से देहरादून लोकल रुट में बसों की कमी देखने को मिल रही है। पहले पहली बस सुबह 6.30 बजे देहरादून के लिए रवाना होती थी। लेकिन कुछ समय से यह सेवा समाप्त कर दी है। अब पहली बस सुबह सात बजे देहरादून के लिए रवाना होती है। देहरादून पर सवारियों की संख्या अधिक है। बावजूद उत्तराखंड परिवहन निगम फायदे के रुट पर बसें संचालित नही कर रहा है।
पंजाब की बस सुबह 6.40 पर ऋषिकेश से देहरादून होते हुए संगरुर के लिए रवाना होती है। ऋषिकेश से देहरादून जाने वाली सवारियां पंजाब की बस में सफर करने को मजबूर है। सुबह दस बजे तक देहरादून जाने वाली बसों का हाल यही है। सवारियां अधिक है लेकिन बसें संचालित नही की जा रही है। निगम की लचर प्रणाली से फायदे के रुट पर बाहरी बसों को सवारियां मिल रही है।
ऋषिकेश से देहरादून जाने वाली सवारियों में छात्र व कर्मचारी की संख्या अधिक है जो प्रतिदिन ऋषिकेश से देहरादून का सफर तय करते है। इनमें अधिकत्तर पास धारक है, जो निर्धारित समय में बस नही मिलने से परेशान है। समय पर पहुंचने के लिए रोडवेज की बसें नही मिलने से अन्य साधनों से देहरादून पहुंच रहे है। गुरुवार को भी कमोबेश यही हॉल रहा, जब देहरादून रुट पर बस नही मिलने से सवारियां घंटों तक भटकती रही।

सीएम की ड्यूटी में तैनात सुरक्षा कर्मी जाम में फंसे
ऋषिकेश। रानीपोखरी के सौंग नदी में खनन के गेट पर सुबह प्रवेश करने के लिए सड़क किनारे डंपर व ट्रैक्टर खड़े होने से एक किमी लंबा जाम लग गया। सौंग पुल में वाहन फंसने से सीएम के ऋषिकेश दौरे पर देहरादून से आ रहे वाहन व ड्यूटी में तैनात सुरक्षा कर्मी भी जाम में फंस गये। निर्धारित समय में कार्यक्रम स्थल में पहुंचने के लिए सुरक्षा कर्मी स्वयं ही वाहनों से बाहर निकले और जाम खुलवाने का प्रयास करने लगे। इस मार्ग की हालत यह रही कि दो किमी के फासले को पार करने में वाहनों को 20 से 25 मिनट का समय लग गया।

दूषित पानी आने पर जल संस्थान के अधिकारियों का घेराव

ऋषिकेश।
मायाकुंड वार्ड की सभासद विजय लक्ष्मी भट्ट के साथ स्थानीय लोग दूषित पेयजल लेकर सोमवार को जल संस्थान कार्यालय पहुंचे। उन्होंने अधिकारियों से उस गंदे पानी को पीने के लिए कहा। इस पर अधिकारी आक्रोशित हो गए। लोगों की उनके साथ तीखी बहस होने लगी। लोगों का कहना था कि क्षेत्र के करीब 20-25 घरों के नलों में कई दिनों से गंदे पानी की आपूर्ति हो रही है। कई लोग इससे बीमार पड़ चुके हैं। बताया कि इस बारे उन लोगों ने विभाग से कई बार लिखित और मौखित शिकायत की लेकिन समस्या समाधान नहीं हुआ।
लोगों ने अधिकारियों से अनियमित जलापूर्ति की भी शिकायत की। चेतावनी दी कि जल्द ही पानी की सुचारु और स्वच्छ आपूर्ति नहीं हुई तो वे आंदोलन को बाध्य होंगे। घेराव करने वालों में संगीता पटेल, संजय बिष्ट, घनश्याम भट्ट आदि मौजूद थे।

चहेतों को लाभ पहुंचाने पर संघ का पारा चढ़ा

-हड़ताल पर जाने की चेतावनी
-एसडीएम से मिला, संग्रह सहायक और अमीन संघ
-चुनाव ड्यूटी का मानदेय नही मिलने पर जताया आक्रोश
-मंगलवार तक भुगतान नही होने पर हड़ताल में जाने की चेतावनी
ऋषिकेश।
शनिवार को संग्रह सहायक और संग्रह अमीन संघ के बैनरतले कर्मचारियों ने एसडीएम ऋषिकेश वृजेश कुमार तिवारी से मुलाकात की। कर्मचारियों ने 23 लोगों के चुनाव ड्यूटी का मानदेय आने पर सवाल खड़े किये। बताया कि तहसील के 40-45 कर्मचारी चुनाव ड्यूटी में कार्यरत रहे। आरोप लगाया कि स्थानीय प्रशासन ने अपने चहेतों के ही नाम जिला प्रशासन को भेजे। जिसके कारण मात्र 23 लोगों का मानदेय दो लाख तेहत्तर हजार रुपये ही तहसील में आया है।
कर्मचारियों ने बताया कि पूर्व में भी इसी तरह का व्यवहार किया जाता रहा है। इसलिए चुनाव से पूर्व देहरादून स्थित कर्मचारियों के संघ ने डीएम देहरादून को पत्र सौंपकर चुनाव ड्यूटी का मानदेय का लाभ सभी कर्मचारियों को देने की मांग की थी। जिसपर डीएम ने जिले के सभी एसडीएम को कर्मचारियों को चुनाव ड्यूटी का मानदेय का लाभ देने के निर्देश दिये थे। कर्मचारियों ने नाराजगी जताई कि किसी को 70 से 80 दिन चुनाव ड्यूटी में दिखाया गया है तो किसी का नाम तक शामिल नही किया गया है। कर्मचारियों ने शासन से आयी धनराशि का लाभ सभी कर्मचारियों को देने या फिर छूटे कर्मचारियों को भी अन्य लोगों के बराबर मानदेय दिलाने की मांग की है।
चेतावनी दी कि मंगलवार तक सभी कर्मचारियों को चुनाव ड्यूटी का मानदेय नही दिया गया तो संघ के बैनरतले कर्मचारी हड़ताल पर चले जायेंगे। बताया कि कर्मचारियों ने रेजर्स ग्राउंड, ईवीएम वितरित करने और शासन के द्वारा बनाई गई विभिन्न टीमों में चुनाव के दौरान कार्य किया है। रोष जताने वालों में त्रिलोचन पाण्डेय, भगवान सिंह नेगी, बलवंत, रणवीर सिंह, कमल प्रसाद डंगवाल, योगेश पंत, बालकराम, जोशी, बचन सिंह रावत, गंभीर सिंह रावत आदि शामिल रहे।

चुनाव ड्यूटी के मानदेय पर एक नजर …
एसडीएम ऋषिकेश 35 हजार
तहसीलदार 30 हजार
नायब तहसीलदार 12 हजार
ईओ ऋषिकेश 30 हजार
सिनिरियो 12 हजार
आरके 20 हजार