प्रदेश की नदियों को बचाने और चेक डैम बनाने के निर्देश

मुख्य सचिव डॉ. एस.एस. संधु की अध्यक्षता में शुक्रवार को सचिवालय में प्रदेश की नदियों को बचाए जाने और चेक डैम बनाए जाने आदि के सम्बन्ध में सम्बन्धित विभागों के साथ बैठक आयोजित हुई।
मुख्य सचिव ने कहा कि प्रदेश की नदियों के पुनरोद्धार के लिए प्रयास किए जाने की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि प्रदेश की नदियों को बचाने के लिए प्राधिकरण बनाए जाने की आवश्यकता है। इसके लिए उन्होंने जनपद स्तरीय और राज्य स्तरीय प्राधिकरण बनाए जाने के निर्देश दिए। उन्होंने कहा कि वर्षा आधारित नदियों को बचाने के लिए उनके श्रोत से राज्य की सीमा तक कार्य करने की आवश्यकता है। यह काम सुचारू रूप से हो सके इसके लिए सिंचाई, लघु सिंचाई, जलागम और वन विभाग को मिलकर कार्य करना होगा। उन्होंने कहा कि इस कार्य को लगातार मॉनिटर किया जाए। इसके लिए एक डेडिकेटेड सेल का गठन किया जाए।
मुख्य सचिव ने निर्देश दिए कि वन विभाग और सिंचाई विभाग द्वारा अपने अपने क्षेत्रों में अधिक से अधिक चेक डैम बनाएं जाएं। इससे भूजल स्तर में सुधार आएगा। उन्होंने कहा कि चैक डैम और वृक्षारोपण आदि के माध्यम से लगातार इस दिशा में कार्य करने की आवश्यकता है।
इस अवसर पर वन विभाग से डी.एस. मीणा ने टिहरी जनपद में हेंवल नदी के पुनरोद्धार के लिए किए गए प्रयासों पर एक विस्तृत प्रस्तुतीकरण दिया। मुख्य सचिव ने उनके प्रयासों को सराहते हुए कहा कि इस कार्य को पूरे प्रदेश में किस प्रकार से लागू किया जा सकता है, इसके लिए कॉन्सेप्ट पेपर तैयार किया जाए।
इस अवसर पर अपर मुख्य सचिव आनन्द बर्द्धन, सचिव बी.वी.आर.सी. पुरुषोत्तम, हरिचन्द्र सेमवाल सहित अन्य सम्बन्धित विभागों के अधिकारी उपस्थित रहे।

रिस्पना नदी की अध्ययन रिपोर्ट की शीघ्र डीपीआर तैयार किया जाएः त्रिवेन्द्र

मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत ने रिस्पना को ऋषिपर्णा नदी के स्वरूप में लाने के लिये किये जा रहे प्रयासों की समीक्षा की। उन्होंने नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ हाइड्रोलॉजी (एनआईएच), रूड़की की ओर से रिस्पना नदी के सम्पूर्ण क्षेत्र की भूमि व जल संवर्धन से सम्बन्धित विस्तृत प्रस्तुतिकरण का भी अवलोकन किया। मुख्यमंत्री ने कहा कि एनआईएच रुड़की द्वारा तैयार की गई इस विस्तृत अध्ययन रिपोर्ट के आधार पर शीघ्र डीपीआर तैयार की जाए। ताकि अगले माह तक इसकी निविदा प्रकाशित कर कार्य प्रारम्भ किया जा सके। मुख्यमंत्री ने इस सम्बन्ध में सभी सम्बन्धित विभागों की संयुक्त बैठक भी आयोजित किये जाने के निर्देश दिये। उन्होंने कहा कि रिस्पना का पुनर्जीवीकरण देहरादून शहरवासियों के व्यापक हित से जुडा विषय भी है। इसमें देहरादून के पर्यावरण को संरक्षित करने में मदद मिलेगी तथा भविष्य में जल संकट के समाधान की भी राह प्रशस्त हो सकेगी।

मुख्यमंत्री ने कहा कि प्रारम्भिक चरण में रिस्पना एवं कोसी नदी को पुनर्जीवित करने का लक्ष्य रखा गया है। इसके बाद अन्य नदियों को भी पुनर्जीवित किया जायेगा। आने वाली पीढ़ी को सुरक्षित रखने के लिए जल संरक्षण की दिशा में विशेष प्रयासों की उन्होंने जरूरत बतायी। जल संरक्षण के लिए वृक्षारोपण करना जरूरी है। सूखे जल स्त्रोतों को पुनर्जीवित करना हम सबका दायित्व है।

रिस्पना नदी का देहरादून से अनूठा रिश्ता
मुख्यमंत्री ने कहा कि देहरादून शहर के मध्य से गुजरती हुयी रिस्पना नदी का देहरादून के साथ एक अनूठा रिश्ता भी है। मिशन ऋषिपर्णा देहरादून वासियों के पास एक मौका है इस नदी को उसके पुराने अविरल स्वरूप में वापस लाने का। शहर के संतुलित विकास हेतु समय की मांग है कि रिस्पना को पुनर्जीवित किया जाए। हमारे वर्तमान और भविष्य को सुरक्षित करने के लिए यह आवश्यक पहल भी है। उन्होंने कहा कि रिस्पना के उद्गम क्षेत्र में किये गये व्यापक वृक्षारोपण से हरियाली होगी और भूजल स्तर में भी वृद्धि होगी। यह हमारे लिए प्रकृति की सुंदरता की सौगात भी होगी।

बनेंगे 19 छोटे चैक डेम
नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ हाइड्रोलॉजी, रूड़की की अध्ययन रिपोर्ट में बताया गया है रिस्पना नदी क्षेत्र के 53.45 कि0मी0 केचमेंट एरिया के इस क्षेत्र में 19, छोटे चैक डेम तैयार किये जायेंगे। जल की गुणवत्ता के लिये बेहतर उपचार की व्यवस्था के साथ ही तालाबों के निर्माण एवं सतही जल के प्रबन्धन पर ध्यान दिया जाना होगा। इस क्षेत्र में वाटर हारवेस्टिंग पर ध्यान देने, नदी क्षेत्र के आस पास एसटीपी के निर्माण के साथ ही सौंग बांध से भी इसमे जल उपलब्धता की बात कही गई है।

केन्द्रीय जलमंत्री ने मुख्यमंत्री को दिया भरोसा, हर संभव करेंगे मदद

मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत से केन्द्रीय जल शक्ति मंत्री गजेन्द्र सिंह शेखावत ने भेंट की। उन्होंने मुख्यमंत्री से राज्य में संचालित सिंचाई, पेयजल, बाढ़ सुरक्षा से सम्बन्धित विभिन्न योजनाओं के संचालन एवं राज्य में निर्मित होने वाले सौंग व जमरानी बांध के साथ ही प्रस्तावित जलाशय व झील निर्माण से संबंधित योजनाओं के संबंध में चर्चा की। केन्द्रीय जल शक्ति मंत्री ने केन्द्रीय स्तर पर राज्य की लम्बित योजनाओ पर समुचित कार्यवाई किये जाने का आश्वासर मुख्यमंत्री को दिया, उन्होंने पानी बचाने की व्यापक मुहिम संचालित करने पर बल देते हुए स्कूल व कॉलेजों में भी इसके लिए जनजागरण की बात कही।
मुख्यमंत्री ने केन्द्रीय मंत्री को अवगत कराया कि देहरादून में सौंग नदी पर 109 मीटर ऊंचा कंक्रीट ग्रेविटी बांध बनाया जाना प्रस्तावित है। इससे देहरादून की वर्ष 2051 तक की आबादी हेतु पेयजल की उपलब्धता सुनिश्चित होगी। इसमें भूजल स्तर में सुधार के साथ ही रिस्पना एवं बिंदाल के पुनर्जीवीकरण में मदद मिलेगी। योजना की लागत 1290 करोड़ है। इसके साथ ही मुख्यमंत्री ने गोला नदी पर 130.60 मीटर ऊंचा कंक्रीट ग्रेविटी बांध बनाया जाना प्रस्तावित है। इसमें नैनीताल व हल्द्वानी की पेयजल समस्या का समाधान होने के साथ ही उत्तर प्रदेश व उत्तराखण्ड के 150027 हे. कमाण्ड में 57065 हे. अतिरिक्त सिंचन क्षमता की वृद्धि होगी। इसके साथ ही इस योजना से 14 मेगावाट विद्युत उत्पादन, मत्स्य पालन व पर्यटन योजनाओं का विकास होगा। इसके लिये जल संसाधन मंत्रालय की एडवाइजरी कमेटी द्वारा स्वीकृति प्रदान की जा चुकी है योजना की लागत 2584.10 करोड़ है।
मुख्यमंत्री ने केन्द्रीय जल शक्ति मंत्री को अवगत कराया कि उत्तराखण्ड राज्य का 86 प्रतिशत भू-भाग पर्वतीय है साथ ही राज्य का लगभग 63 प्रतिशत क्षेत्र वन भूमि से भी आच्छादित है तथा राज्य को प्रतिवर्ष विभिन्न प्राकृतिक आपदाओं यथा बाढ़, अतिवृष्टि, बादल फटना आदि से जूझना पड़ता है। दैवीय आपदा से राज्य में निर्मित नहरों को अत्यधिक क्षति पहुँचती है एवं राज्य की वित्तीय स्थिति के दृष्टिगत सभी नहरों का जीर्णोद्धार, सुदृढीकरण किया जाना सम्भव नहीं है जिस कारण सृजित सिंचन क्षमता को बनाये रखना संभव नहीं हो पा रहा है। पर्वतीय क्षेत्रों में अधिकांश जल स्त्रोंतों, जिनमें सिंचाई हेतु नहरों का निर्माण संभव है, किया जा चुका है एवं संतृप्ता की स्थिति में है। अन्य क्षेत्रों में लिफ्ट नहर योजनाओं का निर्माण कर सिंचाई सुविधा प्रदान की जा रही है।
मुंख्यमंत्री ने बाढ़ प्रबन्धन कार्यक्रम के तहत जी.एफ.सी.सी पटना द्वारा बाढ़ प्रबन्धन कार्यक्रम के अन्तर्गत उत्तराखण्ड की 38 बाढ़ सुरक्षा योजनायें जिनकी लागत रू. 1108.37 करोड़ है, की इन्वेस्टमेंट क्लीयरेंस तथा वित्तीय स्वीकृति प्रदान करने तथा कृषि सिंचाई योजना-त्वरित सिंचाई लाभ कार्यक्रम के तहत केन्द्रांश की धनराशि रू. 77.41 करोड़ स्वीकृत करने का भी अनुरोध किया। मुख्यमंत्री ने केन्द्रीय मंत्री से जल जीवन मिशन योजना के तहत योजना की लागत में ग्राम के आन्तरिक कार्यों की लागत के सापेक्ष उपभोक्ता से 5 प्रतिशत अंशदान लिए जाने की शर्त पर्वतीय ग्रामों में भवनों के दूर-दूर स्थित होने और इस कारण आन्तिरिक कार्यों की भी योजना लागत अधिक आने के साथ-साथ ग्रामवासियों की आर्थिक स्थिति भी ठीक न होने के दृष्टिगत पर्वतीय राज्यों को उपभोक्ता अंशदान से मुक्ति प्रदान करने का अनुरोध किया।
मुख्यमंत्री ने केन्द्रीय मंत्री से यह भी अपेक्षा की कि पर्वतीय क्षेत्रों में सतही वर्षाजल को रोककर लघु जलाशयों (नद्यताल) का निर्माण आसपास के क्षेत्रों में भूजल के संवद्धनध्रिचार्ज, कम लागत की पम्पिंग योजनाओं के निर्माण तथा क्षेत्र में पर्यटन गतिविधियों के विकास हेतु अति आवश्यक है, किन्तु यह कार्य काफी व्ययसाध्य है। अतः इस महत्वपूर्ण कार्य के लिए भारत सरकार द्वारा पृथक से केन्द्र पोषित योजना निरूपित कर राज्य सरकारों को वित्तीय सहायता सुलभ करायी जाय।

गलोबल वार्मिंग से बचना है तो अधिक से अधिक पेड़ लगाएंः रमेश भटट

मुख्यमंत्री के मीडिया सलाहकार रमेश भटट ने भीमताल के ऐतिहासिक हरेला पर्व में शिरकत की। इस दौरान उन्होंने कहा कि हमारे पूर्वज हरेला पर्व के रुप में हमें पर्यावरण संरक्षण का संदेश दे गये हैं जिसे हम सब को मिलकर आगे बढ़ाना है। उन्होंने हरेला पर्व से जुड़ी अपने बचपन की यादें भी ताजा की। बतातें चले कि मीडिया सलाहकार रमेश भटट भी भीमताल के ही रहने वाले है।
भीमताल के हरेला पर्व में पहंुचने पर स्थानीय लोगों और आयोजकों ने मीडिया सलाहकार रमेश भटटक ा जोरदार स्वागत किया। स्थानीय लोगों का मानना है कि रमेश भटट को मुख्यमंत्री का मीडिया सलाहकार बनाने से भीमताल को एक नई पहचान मिली है। कार्यक्रम में बतौर मुख्य अतिथि पहंुचे रमेश भटट ने सभी लोगों का अभिवादन स्वीकार किया। हमारे संवाददाता से बातचीत में उन्होंने कहा कि अपने लोगों के बीच पहंुचना और उनसे बातें करने से ऊर्जा का संचार होता है। भीमताल उनका घर है वह हर किसी को पहचानते है। कार्यक्रम में उन्होंने हरेला पर्व की सभी को शुभकामनायें दी। कहा कि आज हमारी संस्कृति को नई पहचान मिली है। हरेला पर्व आज कई प्रदेशों में मनाया जाने लगा है। उत्तराखंड ने पूरे विश्व को सिखाया है कि पर्यावरण की सुरक्षा कैसे की जाती है।

मीडिया सलाहकार रमेश भटट ने कहा कि मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत ने हरेला पर्व के माध्यम से विलुप्त हो रही नदियां और सूख रहे प्राकृतिक स्रोतों को फिर से पुनर्जीवित करने का लक्ष्य रखा है। मुख्यमंत्री का मानना है कि नदियों के किनारे और सूख रहे प्राकृतिक स्रोतों को वृहद पौधरोपण कर फिर से जीवित किया जा सकता है। उन्होंने कहा कि आज मुख्यमंत्री के इस अभियान को व्यापक समर्थन मिल रहा है। रमेश भटट ने सभी से अधिक से अधिक पौधें लगाकर उनका सवंर्धन करने की अपील की। उन्होंने कहा कि आने वाली पीढ़ी को शुद्ध हवा व वातावरण मिल सके इसके लिए सबको वृक्षारोपण व पर्यावरण संरक्षण की ओर ध्यान देना होगा। उन्होंने कहा कि हरेला सुख-समृद्धि व जागरूकता का प्रतीक है। उन्होंने कहा कि आने वाली पीढ़ी को अच्छा पर्यावरण मिले मिले इसके लिए हमें संकल्प लेना होगा।

मीडिया सलाहकार रमेश भटट ने कहा कि आज पूरा विश्व गलोबल वार्मिग की समस्या से जूझ रहा है। ऐसे में सभी की नजर वन आच्छादित उत्तराखंड में है। उन्होंने कहा कि उत्तराखण्ड जैव विविधता वाला राज्य है। भारत की कुल जैव विविधता में 28 प्रतिशत योगदान उत्तराखण्ड का है। ईकोलॉजी को बचाने की उत्तराखण्ड पर बड़ी जिम्मेदारी है। उन्होंने कहा कि हमें अपने पूर्वजों की याद व बच्चों के जन्म व शादी पर वृक्षारोपण करने की पंरपरा को बनाये रखना होगा।

हरेला पर्व पर प्रदेश भर में वृहद स्तर पर वृक्षारोपण किया जा रहा है। इस बार हरेला पर्व पर 6.25 लाख पौधे लगाये जा रहे हैं। कार्यक्रम में उन्होंने सरकार की कल्याणकारी योजनाओं की भी जानकारी दी और अधिक से अधिक लाभ उठाने को कहा। मीडिया सलाहकार रमेश भटट ने हरेला पर्व पर लगाई गई पांरपरिक स्टाॅलों का निरीक्षण भी किया। मौके पर कई सांस्कृतिक कार्यक्रमों का भी आयोजन किया गया। प्रतियोगिताओं में अव्वल आने पर उन्होंने कई बच्चों और छात्रों को सम्मानित भी किया।