शिया बोर्ड के हलफनामे से राम जन्म भूमि विवाद में नया मोड़ आने के संकेत

राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद का हल निकलने की उम्मीद प्रबल होती जा रही है। शुक्रवार सेे सुप्रीम कोर्ट की विशेष पीठ मामले की सुनवाई करेगी। इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ लंबित चुनौतियों के साथ यूपी शिया वक्फ बोर्ड की ओर से दायर हलफनामे पर विशेष पीठ सुनवाई करेगी। साथ ही बोर्ड द्वारा विवादिल स्थल पर मालिकाना हक जताने की अपील पर साथ में सुनवाई कर सकती है।
रामलला विराजमान, हिन्दू महासभा और सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड समेत तमाम पक्षकारों हाईकोर्ट के तीन न्यायाधीशों की खंडपीठ के 30 सितंबर 2010 के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी। हाईकोर्ट ने दो-एक के बहुमत से फैसला सुनाते हुए राम जन्मभूमि को तीन बराबर हिस्सों में रामलला विराजमान, निर्मोही अखाड़ा और सुन्नी बोर्ड मे बांटने का आदेश दिया था। सर्वोच्च अदालत ने 9 मई 2011 को हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ दाखिल याचिकाएं विचारार्थ स्वीकार की थीं और हाईकोर्ट के आदेश पर अंतरिम रोक लगा दी थी। साथ ही कहा था कि मामला लंबित रहने तक संबंधित पक्षकार विवादित भूमि पर यथास्थिति बनाए रखेंगे। इसके बाद भाजपा सांसद सुब्रमण्यम स्वामी ने दर्शनार्थियों के लिए मूलभूत सुविधाएं मुहैया कराने की मांग की जिसका विरोध मुख्य याचिकाकर्ता मोहम्मद हाशिम ने की थी। लेकिन अदालत ने स्वामी की मांग को मुख्य मामले के साथ सुनवाई करने का निर्णय लिया।
सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में तीन न्यायाधीशों जस्टिस दीपक मिश्रा, अशोक भूषण और अब्दुल नजीर की विशेष पीठ का गठन मामले पर सुनवाई के लिए किया। शुक्रवार, 11 अगस्त को दोपहर दो बजे से इस मामले पर नियमित सुनवाई होगी या फिर अंतरिम राहत की मांग वाले आवेदनों पर विचार किया जाएगा। यह सुनवाई के दौरान ही विशेष पीठ स्पष्ट करेगी। दरअसल इस मामले की सुनवाई के लिए विशेष पीठ का गठन करते हुए अदालत ने यह स्पष्ट नहीं किया है और रजिस्ट्री ने संबंधित पक्षकारों को ऐसी कोई सूचना दी है जिससे यह साफ हो कि विशेष पीठ मामले के किस पहलू पर गौर करेगी। साथ ही अदालत से स्वामी ने भी आवेदन में जल्द सुनवाई की मांग कई बार की है और अदालत ने उन्हें जल्द सुनवाई करने का भरोसा भी दिलाया था।
सुनवाई की तिथि से कुछ दिन पहले ही शिया बोर्ड ने हलफनामा दाखिल कर मामले में समुचित समझौते का रुख व्यक्त किया। उसने कहा कि विवादित स्थल से समुचित दूरी पर मुस्लिम बहुल इलाके में एक मस्जिद का निर्माण किया जा सकता है। इसके बाद ठीक अगले दिन शिया बोर्ड ने ढहाए जा चुके विवादिल स्थल की जमीन के मामले में 1946 में दिए गए ट्रायल कोर्ट के फैसले को चुनौती दे दी। सात दशक बाद दायर याचिका में उसने विवादित स्थल पर मालिकाना हक जताते हुए ट्रायल कोर्ट के फैसले में खामी बताई और सुप्रीम कोर्ट से मामले पर विचार कर फैसला करने की गुजारिश की। इस अपील में कहा गया है कि मस्जिद बाबर ने नहीं, मीर बाकी ने बनवाई थी जो एक शिया था।
खास बात ये है कि हलफनामे में शिया वक्फ बोर्ड ने यह भी कहा कि सुन्नी वक्फ बोर्ड शांतिपूर्ण तरीके से इस विवाद का हल नहीं चाहता। इस मसले को सभी पक्ष आपस में बैठकर सुलझा सकते हैं जिसके लिए सुप्रीम कोर्ट उन्हें समय दे। बोर्ड ने कहा कि इसके लिए एक उच्चस्तरीय कमेटी बनाई जाए। सर्वोच्च अदालत इस मामले को बातचीत के जरिए हल करने को पहले ही कह चुका है। ऐसे में शिया बोर्ड का हलफनामा इस मामले का अदालत का रुख बदल सकता है और सभी पक्षकारों से समझौते को लेकर अदालत सवाल कर सकती है।

हिन्दू है जिम्मेदार तो जिन्ना ने पाकिस्तान की क्यों की थी मांग

पाकिस्तान अपने राष्ट्रवादी नजरिए के मुताबिक इतिहास को तोड़ने-मरोड़ने का काम कर रहा है। इसके लिए इतिहास की किताबों को हथियार बनाते हुए यह बताया जाता है कि जब 70 साल पहले भारत और पाकिस्तान के बंटवारे के दौरान हुए खून-खराबे के लिए हिंदू जिम्मेदार हैं।
पाकिस्तान के ब्लूचिस्तान प्रांत के स्कूलों में पढ़ाई जाने वाली सरकारी मान्यता प्राप्त ग्रेड पांच की इतिहास की किताबों में हिंदुओं को ‘हत्यारा’ बताया गया है, जिन्होंने मुसलमानों का नरसंहार किया, उनकी संपत्ति जब्त कर ली और उन्हें भारत छोड़ने के लिए मजबूर किया।
पाकिस्तान के पंजाब प्रांत के 17 साल के नोमान अफजल ने अपनी इतिहास की किताब में लिखे एक उत्तर का जिक्र करते हुए कहा, वे हमें नीचा समझते थे, इसलिए हमने पाकिस्तान बनाया।
महात्मा गांधी के अध्याय, इस बात का साफ उदाहरण है कि सीमा के दोनों और बंटवारे को कितना अलग-अलग तरीके से पेश किया गया है। पाकिस्तान में आजादी के लिए गांधी के संघर्ष का कुछ खास जिक्र नहीं किया गया है, जबकि भारत में उन्हें ‘वन मैन आर्मी’ के तौर पर पेश किया जाता है।

अयोध्या रामजन्म भूमिः देश दुनिया की नजरें सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर टिकेगी

देश विदेश में अयोध्या का नाम सुनते साथ ही हिन्दूओं की आस्था के प्रतीक श्रीराम की तस्वीर उभर कर सामने आ जाती है। इस मामले में नया घटनाक्रम यह है कि अब अयोध्या रामजन्म भूमि-बाबरी मस्जिद विवाद की सुनवाई सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने 11 अगस्त से करने का फैसला किया है। इसके लिए सुप्रीम कोर्ट ने 3 जजों की स्पेशल बेंच तैयार की है। इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने इस विवाद को कोर्ट के बाहर सुलझाने का सुझाव दिया था। ये एक ऐसा विवाद है, जिसकी आंच में भारतीय राजनीति आजादी के बाद से ही झुलसती रही है। 6 दिसंबर 1992 को बाबरी मस्जिद ढहा दी गई थी, जिसका मुकदमा आज भी लंबित है।
आपकों बताते चले कि देश की आजादी से पूर्व इस स्थान को लेकर दोनों पक्षों में विवाद है। एक ओर हिन्दू इसे श्री राम की जन्म स्थली बताकर राम मंदिर का निर्माण करना चाहते है वहीं मुस्लिम इसे बाबरी मस्जिद बताकर अपना पक्ष रख रहे है। दोनों के दावे अब तक कई कोर्ट से होते हुए सुप्रीम कोर्ट तक पहुंच गये है। पूर्व में इलाहाबाद कोर्ट ने उक्त स्थान की खुदाई करवाकर जिस पक्ष के अवशेष मिलेंगे, उसका दावा पुख्ता माना जायेगा कहा था। जिस पर खुदाई के दौरान हिन्दूओं से संबधित अवशेष मिले जिस पर कोर्ट ने इस स्थान को हिन्दुओं का माना। मुस्लिम पक्ष के सुप्रीम कोर्ट पहुंचने के बाद दोनों पक्षों ने अपने-अपने दावे किये।
इस बीच सुप्रीम कोर्ट ने इस विवाद को कोर्ट के बाहर सुलझाने का सुझाव भी दिया। लेकिन कोई ठोस निर्णय सामने नही आ सका। अब फिर सुप्रीम कोर्ट ने अयोध्या रामजन्म भूमि-बाबरी मस्जिद विवाद की सुनवाई 11 अगस्त से करने का फैसला किया है। अब देश दुनिया की नजरें फिर से हिन्दुस्तान की ओर होंगी। सुप्रीम कोर्ट के ट्रायल और फैसले से देश की राजनीति में इसका सीधा असर पड़ने की उम्मीद जताई जा रही है।

बारिश ने रोकी आवश्यक वस्तुओं की आपूर्ति

केदारनाथ हाईवे पर लगातार हो रहे भूस्खलन का सिलसिला थमने का नाम नहीं ले रहा है। हाईवे पर जगह-जगह हो रहे भूस्खलन से केदारनाथ यात्रा बुरी तरह प्रभावित हो रही है। हाईवे पर आवाजाही बाधित होने से देश-विदेश से बाबा के दर्शनों के लिये यहां पहुंच रहे तीर्थ यात्री समय पर केदारनाथ धाम नहीं पहुंच पा रहे हैं। साथ ही केदारनाथ यात्रा के मुख्य पड़ावों में समय पर आवश्यक वस्तुओं की आपूर्ति भी नहीं हो पा रही है। जिसका खामियाजा यात्रियों के साथ ही केदारघाटी की जनता को भुगतना पड़ रहा है।
पहाड़ों में आफत की बारिश थमने का नाम नहीं ले रही है। लगातार हो रही बारिश से जहां आम जन जीवन अस्त-व्यस्त हो रहा है। वहीं जगह-जगह भूस्खलन होने से जिदंगी पटरी से उतर रही है। केदारनाथ धाम की यात्रा में भी भूस्खलन बाधक बन रहा है। केदारनाथ हाईवे पिछले एक सप्ताह से भूस्खलन के कारण जगह-जगह बंद हो रहा है। केदारनाथ हाईवे बांसबाड़ा और डोलिया देवी में नासूर बन गया है। डोलिया देवी में आये दिन भूस्खलन होने से घंटों तक आवाजाही प्रभावित हो रही है। जिस कारण यात्रियों को कई घंटों तक यहां पर रूकना पड़ रहा है। स्थिति यह है कि देश-विदेश से बाबा केदार के दर्शनों के लिये पहुंच रहे यात्रियों को बारिश में भीगकर हाईवे खुलने का इंतजार करना पड़ रहा है। केदारनाथ हाईवे के बंद होने से यात्रा के मुख्य पड़ाव सोनप्रयाग, सीतापुर, गौरीकुंड, फाटा आदि स्थानों में समय पर आवश्यक वस्तुओं की आपूर्ति भी नहीं हो पा रही है। केदारघाटी की जनता और केदारनाथ जाने वाले तीर्थयात्री केदारनाथ हाईवे पर जान जोखिम में डालकर आवाजाही कर रहे हैं।

तो फतवों की वजह से नही बोलते मुस्लिम जय श्री राम!

बिहार विधानसभा परिसर में ‘जय श्रीराम’ के नारे लगाने वाले जेडीयू नेता खुर्शीद उर्फ फिरोज अहमद के खिलाफ इमारत-ए-शरिया ने फतवा जारी किया है। मुफ्ती सुहैल अहमद कासमी ने फतवा जारी करते हुए उन्हें इस्लाम से खारिज और मुर्तद (विश्वास नहीं करने वाला) करार दिया है।
बिहार विधानसभा परिसर में ‘जय श्रीराम’ का नारा लगाने वाले जेडीयू नेता खुर्शीद उर्फ फिरोज अहमद ने अब ऐसा करने पर माफी मांग ली है। नारा लगाने पर अल्पसंख्यक समुदाय के कुछ लोग उनसे नाराज थे। इमारत-ए-शरिया ने उनके खिलाफ फतवा जारी किया था। मुफ्ती सुहैल अहमद कासमी ने फतवा जारी करते हुए उन्हें इस्लाम से खारिज और मुर्तद (विश्वास नहीं करने वाला) करार दिया था। फतवा जारी होने पर फिरोज ने हालांकि कहा था कि वह इससे डरने वाले नहीं।
हालांकि, अब अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री फिरोज ने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के सामने माफी मांग ली है। उन्होंने कहा, ‘जो इससे आहत हुए हैं मैं उनसे माफी मांगता हूं। मैंने किसी को भला-बुरा नहीं कहा है। किसी ने नहीं पूछा कि मेरे मन में क्या है।’ इससे पहले फतवा जारी होने पर फिरोज ने कहा था, ‘भगवान ही जानता है कि मैंने किस इरादे से ‘जय श्रीराम’ के नारे लगाए थे। मेरा काम ही बताएगा कि मैं कौन हूं। मैं इमारत-ए-शरिया की काफी इज्जत करता हूं, लेकिन उन्हें फतवा जारी करने से पहले मेरे इरादों को समझना चाहिए था, आखिर मैं क्यों डरूं?’
बता दें कि जेडीयू-बीजेपी गठबंधन सरकार के शुक्रवार को विश्वास मत जीत लेने के बाद फिरोज ने विधानसभा परिसर में ‘जय श्रीराम’ के नारे लगाए थे। उन्होंने कहा था, ‘अगर जय श्रीराम का नारा लगाने से बिहार की 10 करोड़ जनता का फायदा होता है, तो मैं सुबह-शाम जय श्रीराम कहूंगा, हमारे इस्लाम में नफरत करने की कोई जगह नहीं है, इस्लाम की बुनियाद मोहब्बत और प्रेम का होता है। मैं रहीम के साथ राम को भी पूजता हूं, खुदा आत्मा में बसते हैं।’

भद्रा काल और चन्द्र ग्रहण में न बांधे राखी

रक्षा बंधन का यह पवित्र पर्व इस बार सिर्फ पौने तीन घंटे तक ही मनाया जा सकता है। यानी आप पौने तीन घंटे के बीच ही अपने भाई की कलाई को अपनी प्यारी-प्यारी राखियों से सजा सकते हैं। सुबह भद्रा और फिर चंद्रगहण का सूतक लगने से यह स्थिति बन रही है।
दरअसल इस बार रक्षा बंधन का यह त्योहार सात अगस्त को पड़ रहा है और इसी दिन चंद्रगहण भी है। सुबह भद्रा होने और इसके बाद चंद्र ग्रहण का सूतक लगने से रक्षाबंधन पर यह स्थिति बन रही है। चंद्र ग्रहण लगभग एक घंटे 57 मिनट रहेगा। आचार्य डॉ. नवीन चंद्र जोशी बताते हैं कि रक्षाबंधन के लिए सुबह 11.05 बजे तक भद्रा है। भद्रा में भाई को राखी नहीं बांधी जाती है।
दोपहर 1.52 बजे चंद्र ग्रहण का सूतक चल रहा है और सूतक में भी रक्षाबंधन पर्व नहीं मनाया जा सकता। इसलिए सुबह 11.05 बजे से दोपहर 1.52 बजे तक यानी लगभग पौने तीन घंटे ही रक्षाबंधन का पर्व मनाया जा सकेगा।
वहीं माना जा रहा है कि इस ग्रहण के चलते समुद्र में भी उथल-पुथल आदि के योग बन रहे हैं, जिससे समुद्री इलाकों में जन-धन की हानि हो सकती है। इसका असर ग्रहण के दिन या उसके एक-दो दिन में देखने को मिल सकता है।

ग्रहण में क्या करें
ज्योतिष गणित के मुताबिक ग्रहण काल के दौरान ईष्ट देवता की आराधना, जप, धार्मिक पुस्तकों का अध्ययन, भजन-कीर्तन, आदि कार्य करना चाहिए। इनका विशेष फल प्राप्त होता है। ग्रह पीड़ा होने पर इसके निवारण के लिए जप, दान आदि करें।

किस राशि के लिए शुभ, किस राशि के लिए अशुभ
इसबार पड़ने वाला चंद्र ग्रहण मेष, सिंह, वृश्चिक, मीन राशि वालों के लिए शुभ है, जबकि वृष, कर्क, कन्या और धनु के लिए सामान्य और मिथुन, तुला, मकर, कुंभ राशि वालों के लिए अशुभ है। उनका कहना है कि जिनके लिए यह अशुभ है वह ग्रहण ना देखें, वैसे तो ग्रहण देखने से सभी को बचना चाहिए।

क्या ना करें, क्या करें
गर्भवती स्त्री ग्रहण काल में घर से बाहर न निकलें। बुजुर्ग, बच्चे और रोगी को छोड़ ग्रहण काल के दौरान भोजन न करें। मन में किसी प्रकार का दुर्विचार न आने दें साथ ही रात्रि में भ्रमण ना करें।

रामायण प्रचार समिति ने शोभायात्रा निकालीं

श्रीरामायण प्रचार समिति के 32वें वार्षिकोत्सव पर शहर में कलश यात्रा निकाली गई। कलश यात्रा में बड़ी संख्या में शहरवासी शामिल हुए। कलशयात्रा त्रिवेणीघाट से शुरू होकर शहर के विभिन्न मार्गों से होकर तुलसीमाता मंदिर में संपन्न हुई। वाषिकोत्सव का शुभारंभ स्वामी ह्यग्रीवाचार्य महाराज, व्यवसायी इन्द्रप्रकाश अग्रवाल एवं अनुराग शर्मा ने दीप जलाकर किया। महाराज ने कहा कि रामायण जीवन में सादगी, संयमता के साथ आदर्श जीवन स्थापित कराती है। धनंजय शास्त्री ने ससंगीत सामूहिक रामचरित मानस का पाठ किया। 30 जुलाई तक चलने वाली कथा में विभिन्न कार्यक्रम आयोजित होंगे। इस अवसर पर पालिकाध्यक्ष दीप शर्मा, व्यापार सभा अध्यक्ष नवल कपूर, अनुराग जोशी, अभिषेक शर्मा, चित्रमणि देशवाल, राधामोहन प्रसाद, राजीव लोचन, राधामोहन दास, सभासद रीना शर्मा, रामचन्द्र, आदेश तोमर, राजेन्द्र प्रसाद, मदनमोहन शर्मा, आचार्य सतीश घिल्डियाल, दीपक बधानी, दर्शनी देवी, रजनी देवी, पूनम अरोड़ा, सीमा शर्मा, अंशुला देवी, सुमनी देवी, अमृता शर्मा आदि उपस्थित थे।

श्रावणमास में खिले केदारघाटी के व्यापारियों के चेहरे

बाबा का धाम फिर से गुलजार होने लगा है। सावन के महीने में बड़ी संख्या में भक्त केदारनाथ धाम को पहुंच रहे हैं। बरसात और भूस्खलन के आगे श्रद्धा भारी है। तीर्थयात्रियों की आमद बढ़ने से केदारपुरी भी गुलजार होने लगी है और व्यापारियों के चेहरों पर भी मुस्कान लौट आई है। वहीं मंदिर समिति की आय में भी इजाफा हो रहा है।
पिछले कुछ दिनों से बरसात होने के कारण केदारनाथ धाम में भक्तों का अकाल पड़ गया था। यात्रियों की संख्या नगण्य होने से व्यापारियों के चेहरों पर भी उदासी थी और मंदिर समिति की आय में भी कोई इजाफा नहीं हो रहा था। मगर अब सावन के महीने में बाबा का धाम फिर से गुलजार होने लगा है। तीर्थयात्रियों की संख्या भी बढ़ती जा रही है। एक-दो दिनों से केदार धाम पहुंचने वाले तीर्थयात्रियों की संख्या एक से दो हजार के पार पहुंच रही है, जबकि पिछले दिनों दो से तीन सौ के करीब तीर्थयात्री ही बाबा के दरबार में पहुंच रहे थे। सोमवार को दो हजार तीन सौ 16 तीर्थयात्रियों ने बाबा केदार के दरबार में पहुंचकर मत्था टेका। जिससे यात्रा का आंकड़ा तीन लाख 81 हजार 154 पहुंच गया है।
केदारनाथ में जलाभिषेक करने का विशेष महातम्य है। जो भक्त सावन मास में यहां पहुंचकर भगवान भोले को जल के साथ ब्रह्मकमल चढ़ाता है। उसकी सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं। तीर्थ पुरोहित उमेश पोस्ती ने कहा कि सावन माह में केदारनाथ बाबा के दरबार में श्रद्धालुओं की संख्या बढ़ रही है। भारी बारिश के बावजूद भी तीर्थयात्री केदार धाम को पहुंच रहे हैं। उन्होंने कहा कि बाबा केदार के प्रति श्रद्धालुओं की अगाध आस्था है। प्रशासन से यात्रा मार्गों को दुरूस्त करने की मांग की है।

आंतकियों ने अमरनाथ यात्रियों को बनाया निशाना, 6 की मौत

जम्मू कश्मीर के अनंतनाग जिले में अमरनाथ यात्रियों पर आतंकी हमले की खबर है। इस हमले में छह तीर्थयात्री मारे गए हैं जबकि 12 अन्य घायल हैं। आतंकियों ने पुलिस पार्टी को भी निशाना बनाया। शुरुआती जानकारी के अनुसार तीन अलग-अलग जगहों पर आतंकियों ने अमरनाथ यात्रियों को निशाना बनया है।
यह हमला अनंतनाग के पास बटेंगू में हुआ जहां यात्रियों से भरी बस पर अतंकियों ने फायरिंग कर दी। अभी तक मिली जानकारी के अनुसार बालटाल से लौट रही बस पर रात करीब 8.20 बजे यह हमला हुआ। आतंकी हमला करने के बाद फरार हो गए और सुरक्षाबलों ने उनकी तलाश के लिए अभियान शुरू कर दिया है।

आखिर जून माह में क्यों जुटते है कामाख्या मंदिर में देश विदेश के साधक!


रजस्वला स्त्री मासिक धर्म, एक स्त्री की पहचान है, यह उसे पूर्ण स्त्रीत्व प्रदान करता है। लेकिन फिर भी हमारे समाज में रजस्वला स्त्री को अपवित्र माना जाता है। महीने के जिन दिनों में वह मासिक चक्र के अंतर्गत आती है, उसे किसी भी पवित्र कार्य में शामिल नहीं होने दिया जाता, उसे किसी भी धार्मिक स्थल पर जाने की मनाही होती है। लेकिन विडंबना देखिए कि एक ओर तो हमारा समाज रजस्वला स्त्री को अपवित्र मानता है वहीं दूसरी ओर मासिक धर्म के दौरान कामाख्या देवी को सबसे पवित्र होने का दर्जा देता है।
तांत्रिक सिद्धियां यह मंदिर तांत्रिक सिद्धियां प्राप्त करने के लिए प्रसिद्ध है। यहां तारा, धूमवती, भैरवी, कमला, बगलामुखी आदि तंत्र देवियों की मूर्तियां स्थापित हैं।
इस मंदिर को सोलहवीं शताब्दी में नष्ट कर दिया गया था लेकिन बाद में कूच बिहार के राजा नर नारायण ने सत्रहवीं शताब्दी में इसका पुन: निर्माण करवाया था।
कामाख्या शक्तिपीठ नीलांचल पर्वत के बीचो-बीच स्थित कामाख्या मंदिर गुवाहाटी से करीब 8 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यह मंदिर प्रसिद्ध 108 शक्तिपीठों में से एक है। माना जाता है कि पिता द्वारा किए जा रहे यज्ञ की अग्नि में कूदकर सती के आत्मदाह करने के बाद जब महादेव उनके शव को लेकर तांडव कर रहे थे, तब भगवान विष्णु ने उनके क्रोध को शांत करने के लिए अपना सुदर्शन चक्र छोड़कर सती के शव के टुकड़े कर दिए थे। उस समय जहां सती की योनि और गर्भ आकर गिरे थे, आज उस स्थान पर कामाख्या मंदिर स्थित है।
कामदेव का पौरुष इसके अलावा इस मंदिर को लेकर एक और कथा चर्चित है। कहा जाता है कि एक बार जब काम के देवता कामदेव ने अपना पुरुषत्व खो दिया था तब इस स्थान पर रखे सती के गर्भ और योनि की सहायता से ही उन्हें अपना पुरुषत्व हासिल हुआ था।
एक और कथा यह कहती है कि इस स्थान पर ही शिव और पार्वती के बीच प्रेम की शुरुआत हुई थी। संस्कृत भाषा में प्रेम को काम कहा जाता है, जिससे कामाख्या नाम पड़ा।
अधूरी सीढ़ियां इस मंदिर के पास मौजूद सीढ़ियां अधूरी हैं, इसके पीछे भी एक कथा मौजूद है। कहा जाता है एक नरका नाम का राक्षस देवी कामाख्या की सुंदरता पर मोहित होकर उनसे विवाह करना चाहता था। परंतु देवी कामाख्या ने उसके सामने एक शर्त रख दी।
कामाख्या देवी से विवाह कामाख्या देवी ने नरका से कहा कि अगर वह एक ही रात में नीलांचल पर्वत से मंदिर तक सीढ़ियां बना पाएगा तो ही वह उससे विवाह करेंगी। नरका ने देवी की बात मान ली और सीढ़ियां बनाने लगा।
देवी को लगा कि नरका इस कार्य को पूरा कर लेगा इसलिए उन्होंने एक तरकीब निकाली। उन्होंने एक कौवे को मुर्गा बनाकर उसे भोर से पहले ही बांग देने को कहा। नरका को लगा कि वह शर्त पूरी नहीं कर पाया है, परंतु जब उसे हकीकत का पता चला तो वह उस मुर्गे को मारने दौड़ा और उसकी बलि दे दी।
जिस स्थान पर मुर्गे की बलि दी गई उसे कुकुराकता नाम से जाना जाता है। इस मंदिर की सीढ़ियां आज भी अधूरी हैं।मासिक चक्र कामाख्या देवी को ‘बहते रक्त की देवी’ भी कहा जाता है, इसके पीछे मान्यता यह है कि यह देवी का एकमात्र ऐसा स्वरूप है जो नियमानुसार प्रतिवर्ष मासिक धर्म के चक्र में आता है।
सुनकर आपको अटपटा लग सकता है लेकिन कामाख्या देवी के भक्तों का मानना है कि हर साल जून के महीने में कामाख्या देवी रजस्वला होती हैं और उनके बहते रक्त से पूरी ब्रह्मपुत्र नदी का रंग लाल हो जाता है।
निषेध है मंदिर में प्रवेश इस दौरान तीन दिनों तक यह मंदिर बंद हो जाता है लेकिन मंदिर के आसपास ‘अम्बूवाची पर्व’ मनाया जाता है। इस दौरान देश-विदेश से सैलानियों के साथ तांत्रिक, अघोरी साधु और पुजारी इस मेले में शामिल होने आते हैं। शक्ति के उपासक, तांत्रिक और साधक नीलांचल पर्वत की विभिन्न गुफाओं में बैठकर साधना कर सिद्धियां प्राप्त करने की कोशिश करते हैं।
वाममार्गी कामाख्या मंदिर को वाममार्ग साधना के लिए सर्वोच्च पीठ का दर्जा दिया गया है। ऐसा माना जाता है कि मछन्दरनाथ, गोरखनाथ, लोनाचमारी, ईस्माइलजोगी आदि जितने भी महान तंत्र साधक रहे हैं वे सभी इस स्थान पर साधना करते थे, यहीं उन्होंने अपनी साधना पूर्ण की थी।
रजस्वला देवी भक्तों और स्थानीय लोगों का मानना है कि अम्बूवाची पर्व के दौरान कामाख्या देवी के गर्भगृह के दरवाजे अपने आप ही बंद हो जाते हैं और उनका दर्शन करना निषेध माना जाता है। पौराणिक दस्तावेजों में भी कहा गया है कि इन तीन दिनों में कामाख्या देवी रजस्वला होती हैं और उनकी योनि से रक्त प्रवाहित होता है।
सुनहरा समय तंत्र साधनाओं में रजस्वला स्त्री और उसके रक्त का विशेष महत्व होता है इसलिए यह पर्व या कामाख्या देवी के रजस्वला होने का यह समय तंत्र साधकों और अघोरियों के लिए सुनहरा काल होता है।
योनि के वस्त्र इस पर्व की शुरुआत से पूर्व गर्भगृह स्थित योनि के आकार में स्थित शिलाखंड, जिसे महामुद्रा कहा जाता है, को सफेद वस्त्र पहनाए जाते हैं, जो पूरी तरह रक्त से भीग जाते हैं। पर्व संपन्न होने के बाद पुजारियों द्वारा यह वस्त्र भक्तों में वितरित कर दिए जाते हैं।
कमिया वस्त्र बहुत से तांत्रिक, साधु, ज्योतिषी ऐसे भी होते हैं जो यहां से वस्त्र ले जाकर उसे छोटा-छोटा फाड़कर मनमाने दामों पर उन वस्त्रों को कमिया वस्त्र या कमिया सिंदूर का नाम देकर बेचते हैं।
आस्था का विषय देवी के रजस्वला होने की बात पूरी तरह आस्था से जुड़ी है। इस मानसिकता से इतर सोचने वाले बहुत से लोगों का कहना है कि पर्व के दौरान ब्रह्मपुत्र नदी में प्रचुर मात्रा में सिंदूर डाला जाता है, जिसकी वजह से नदी लाल हो जाती है। कुछ तो यह भी कहते हैं कि यह नदी बेजुबान जानवरों की बलि के दौरान उनके बहते हुए रक्त से लाल होती है। इस मंदिर में कभी मादा पशु की बलि नहीं दी जाती।