नगर निगम पर लगा हाईकोर्ट के आदेश की अवहेलना का आरोप

नगर निगम के बाहर एनएच की भूमि पर सब्जी मंडी का आज विरोध किया गया। सब्जी की दुकानों के खिलाफ आज राज्यमंत्री कृष्ण कुमार सिंघल, कांग्रेस प्रदेश महासचिव राजपाल खरोला, एआईसीसी सदस्य जयेंद्र रमोला सहित तमाम उजाड़े गए व्यापारी धरने पर बैठे। उन्होंने व्यापारियों को दोबारा यहां स्थापित करने की मांग की। वहीं, निगम प्रशासन पर हाईकोर्ट के आदेश की अवहेलना करने का भी आरोप जड़ा।

हाईकोर्ट में स्थानीय अनिल गुप्ता ने एक जनहित याचिका दाखिल की थी। जिसमें ऋषिकेश में सरकारी भूमि पर अतिक्रमण हटाने को लेकर याचिका की गई थी। हाईकोर्ट ने अतिक्रमण हटाने के आदेश भी संबंधित विभागों को दिए थे। जिस पर एनएच विभाग द्वारा काफी विरोध प्रदर्शन के बाद ऋषिकेश हरिद्वार रोड पर पिछले 50 सालों से निर्मित पीडब्ल्यूडी ऑफिस के आगे सभी दुकानों को ध्वस्त कर दिया गया था। लोग दुकान टूट जाने के बाद सड़कों पर आ गए थे। जिसके लिए लोगों ने काफी धरना प्रदर्शन और विरोध प्रदर्शन भी किया था। विरोध प्रदर्शन के बावजूद भी एनएच विभाग द्वारा सभी दुकानों को तोड़ दिया गया था।

वहीं कोरोना लॉकडाउन के समय कोरोना संक्रमण से बचने के लिए सुरक्षा हेतु जीवनी माई रोड पर पिछले 40 सालों से स्थापित सब्जी मंडी को हटा दिया गया था। जिसके बाद सैकड़ों सब्जी व्यापारी बेरोजगार हो गए थे।

नगर निगम के सामने नेशनल हाईवे के किनारे जो एनएच विभाग द्वारा अतिक्रमण की वजह से दुकानें तोड़कर के एनएच को खाली कराया था। वहां इन सब्जी विक्रेताओं को बैठने के लिए जगह दी गई। मगर, आज सुबह सड़क के किनारे से हटाए गए व्यापारियों और सब्जी विक्रेताओं के बीच में नोकझोंक शुरू हो गई। व्यापारियों ने आरोप लगाया कि एक तरफ तो नगर निगम ने दुकानदारों को अतिक्रमण के नाम पर उजाड़ दिया। वहीं अब एनएच के किनारे सब्जी की दुकानें स्थापित करवा दीं।

उन्होंने इसे हाईकोर्ट के आदेश का उल्लंघन करना बताया। इसी को देखते हुए राज्य मंत्री कृष्ण कुमार सिंघल व कांग्रेस के प्रदेश महासचिव राजपाल खरोला व एआईसीसी सदस्य जयेंद्र रमोला आदि धरना स्थल पर बैठे और निगम प्रशासन के खिलाफ नारेबाजी की। उधर, याचिकाकर्ता अनिल गुप्ता ने कहा कि हाईकोर्ट के आदेश पर ही एनएच विभाग द्वारा सड़क के किनारे अतिक्रमण हटाया गया था। यदि दोबारा अतिक्रमण कराया गया तो संबंधित विभाग के खिलाफ हाईकोर्ट में जाएंगे और न्यायालय के आदेश की अवहेलना करने के आरोप में विभाग के खिलाफ कार्रवाई करने के लिए बाध्य होंगे।

हाईकोर्ट ने जिला जज देहरादून प्रशांत जोशी को किया सस्पेंड

उत्तराखंड न्याय विभाग से बड़ी खबर है, हाईकोर्ट नैनीताल ने जिला जज देहरादून प्रशांत जोशी को प्रथम दृष्टयता अनुशासनहीनता का दोषी मानते हुए सस्पेंड किया है। हाईकोर्ट ने जिला जज को अगले आदेश तक रूद्रप्रयाग के जजशिप हेड क्वार्टर में अटैच किया है।

दरअसल, 21 और 22 दिसंबर 2020 को जिला जज देहरादून प्रशांत जोशी को मंसूरी में कैंप कोर्ट में जाना था। जिला जज को इसके लिए सरकारी वाहन यूके07जीए-3333 दिया गया है। मगर आरोप है कि जिला जज ने कैंप कोर्ट में जाने के लिए एक प्राइवेट वाहन आॅडी जिसका नंबर यूके07एजे 9252 का उपयोग किया और वाहन पर अपने पदनाम का बोर्ड लगाया।

आदेश पढ़े….


यह भी आरोप है कि जिस प्राइवेट वाहन का जिला जज ने उपयोग किया। वह केवल कृष्ण सोइन व्यक्ति के नाम दर्ज है और उक्त व्यक्ति का देहरादून न्यायालय में आईपीसी की धारा 420, 467, 468 आदि में मुकदमा विचाराधीन है। यह वाद थाना राजपुर देहरादून में पंजीकृत हुआ था।
आज हाईकोर्ट के रजिस्ट्रार जनरल हीरा सिंह बोनल ने आदेश की प्रति जारी की है। इसमें जिला जज प्रशांत जोशी को अग्रिम आदेश तक रूद्रप्रयाग जिजशिप हेड क्वार्टर में अटैच किया गया है। इस मामले में अगले आदेश तक जिला जज को सस्पेंड किया गया है।

सीएम त्रिवेंद्र के मामलें में अटार्नी जनरल ने हाईकोर्ट के फैसले को बताया गलत

अटार्नी जनरल केके वेणुगोपाल सहित कानून के जानकारों ने सीएम त्रिवेंद्र सिंह रावत के मामले में हाईकोर्ट के फैसले को गलत ठहराया। साथ ही इतने कठोर आदेश देने पर आश्चर्य भी जताया।
सीएम को सीबीआई जांच के मामले में सुप्रीम कोर्ट से राहत मिली तो है मगर, मामले में कई गंभीर सवाल पैदा हो रहे है। सरकार का पक्ष सुप्रीम कोर्ट में रखते हुए अटार्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने तो हाई कोर्ट के निर्णय को गलत बताया ही, कानून के कई जानकारों ने भी हाई कोर्ट के फैसले पर हैरानी जाहिर की है।

कानून विशेषज्ञों का मानना है कि जब रावत इस मामले में पक्षकार ही नहीं थे और याचिकाकर्ता की तरफ से भी ऐसी कोई याचना नहीं की गई, तब हाई कोर्ट का इतना कठोर आदेश देना आश्चर्यचकित करता है।

आदेश सुनाने वाली सुप्रीम कोर्ट की पीठ के सदस्य जस्टिस एमआर शाह ने फैसला सुनाते वक्त टिप्पणी भी की कि स्वतः संज्ञान की शक्ति का प्रयोग कर दिया गया हाईकोर्ट का आदेश आश्चर्यचकित करता है। मुख्यमंत्री के वकील मुकुल रोहतगी ने तो इस फैसले को कानून का उल्लंघन बताया है।

कानून के जानकार और सुप्रीम कोर्ट में एडवोकेट ऑन रिकार्ड एम पी शोरावाला का मानना है कि हाई कोर्ट को इस तरह का आदेश देने से पूर्व मुख्यमंत्री का पक्ष भी सुनना चाहिए था। इससे मुख्यमंत्री को अपनी बात अदालत के सामने रखने का मौका मिलता।

जानकारों का कहना है कि बिना सीएम त्रिवेंद्र सिंह रावत का पक्ष सुने केवल उनके खिलाफ इतना बड़ा फैसला उत्तराखंड की राजनीति को प्रभावित कर सकता है।

देहरादून में अतिक्रमण के खिलाफ अभियान की हुई शुरूआत

बीते 18 जून 2018 को हाईकोर्ट ने देहरादून शहर को अतिक्रमणमुक्त करने के निर्देश दिए थे। साथ ही तब मुख्य सचिव से चार सप्ताह के भीतर जवाब भी मांगा था। इसके तहत देहरादून की सभी मुख्य सड़कों के साथ ही संपर्क मार्गों से अतिक्रमण हटाया गया था। तब यह अभियान टास्क फोर्स ने 28 जून 2018 से अभियान शुरू किया था।

एक बार फिर जिला प्रशासन की टीम एक्शन में आई है। शहर को विभिन्न जोन में बांटकर अतिक्रमण हटाने की कार्रवाई आरंभ कर दी गई है। शहर के विभिन्न स्थानों पर नगर निगम, एमडीडीए व पीडब्लूडी के संयुक्त अभियान में अतिक्रमण हटाया जा रहा है। यह अभियान करीब एक सप्ताह तक चलेगा।

टास्क फोर्स के प्रभारी विनय शंकर पांडेय ने बताया कि हाईकोर्ट के आदेश पर टास्क फोर्स शहर को चार जोन में बांटकर प्रमुख सड़कों से अतिक्रमण हटा रही है। लोगों को खुद अतिक्रमण हटाने के लिए कहा गया। चिन्हीकरण के बाद भी कुछ लोगों ने अतिक्रमण नहीं हटाया। उन पर निगम फिर से कार्रवाई कर रहा है।

वहीं, स्थानीय दुकानदार, होटल व्यवसायियों ने अभियान में इकतरफा कार्रवाई न किए जाने पर नाराजगी जताई। उनका कहना था कि बीच में कई अतिक्रमण वाले जगह छोड़ दिए हैं। आगे चलकर अतिक्रमण ध्वस्त किया जा रहा है। इस दौरान क्षेत्रीय पार्षद देवेंद्र पाल मोंटी के साथ स्थानीय लोग पहुंचे और एकतरफ से कार्रवाई करने को कहा। इस दौरान नायब तहसीलदार जसपाल राणा, सीओ सदर अनुज कुमार व पुलिस टीम भी साथ है।

इस प्रकार से है जोन
जोन एकः राजपुर रोड के दोनों छोर, राजपुर रोड व चकराता रोड में मध्य के इलाके, उपजिलाधिकारी मसूरी मनीष कुमार।
जोन दोः घंटाघर से लेकर चकराता रोड के दोनों छोर, सिटी मजिस्ट्रेट कुश्म चैहान।
जोन दो-एः प्रिंस चैक होते हुए सहारनपुर रोड के मध्य के इलाके, अपर नगर मजिस्ट्रेट मायादत्त जोशी।
जोन तीनः गांधी रोड, प्रिंस चैक होते हुए दोनों छोर, उपजिलाधिकारी सदर गोपाल राम बिनवाल।
जोन चारः हरिद्वार रोड के दोनों छोर, उपजिलाधिकारी कालसी संगीता कन्नौजिया।
जोन चार-एः हरिद्वार रोड व राजपुर रोड के मध्य के इलाके, उपजिलाधिकारी मुख्यालय प्रेमलाल।

हाईकोर्ट के आदेश पर सीबीआई ने दर्ज किया पुलिस कर्मियों के खिलाफ मुकदमा

ऊधमसिंहनगर पुलिस के एक चैकी प्रभारी व उनकी टीम पर ढाबा संचालक को चरस के मुकदमे में झूठा फंसाने के आरोप में सीबीआई ने मुकदमा दर्ज किया है। आरोप है कि चैकी प्रभारी, तीन सिपाहियों और दो एसपीओ ढाबे पर पहुंचे और संचालक से मारपीट की। इसके बाद उसके पास से चरस बरामद दिखाई। संचालक ने जब हाईकोर्ट की शरण ली तो सारी कहानी की पोल खुलनी शुरु हुई।
मामला केलाखेड़ा थाना की बेरिया दौलत पुलिस चैकी क्षेत्र का है। यहां हाईवे के पास अनिल शर्मा का पंडित ढाबा है। गत 28 जुलाई की शाम को वहां पर चार-पांच पुलिसकर्मी आए और कर्मचारियों से मारपीट करने लगे। एक कर्मचारियों का फोन भी छीन लिया और अपने मालिक को बुलाने को कहा। ढाबे पर मौजूद मालिक से भी उन्होंने मारपीट की। इसके बाद कर्मचारी को गाड़ी में बैठाकर ले गए और उसके पास से चरस बरामद दिखाई। लेकिन, यह सारी घटना ढाबे पर लगे सीसीटीवी कैमरे में रिकॉर्ड हो गई। 
पुलिसकर्मियों की चालाकी यहीं नहीं रुकी। अगले दिन दो पुलिसकर्मी ढाबे पर आए और सीसीटीवी फुटेज को डिलीट कर दिया। साथ ही किसी को न बताने की धमकी भी दे गए। इसके बाद अनिल शर्मा ने गत सात अगस्त को इस मामले में हाईकोर्ट में रिट दायर की। हाईकोर्ट के संज्ञान में जब यह मामला आया तो उन्होंने एसएसपी ऊधमसिंह नगर से रिपोर्ट मांगी। इस मामले में एसएसपी ने केलाखेड़ा एसओ को लाइन हाजिर और चैकी प्रभारी व तीनों पुलिसकर्मियों को निलंबित कर दिया। पूरे प्रकरण में सीसीटीवी फुटेज और मोबाइल सर्विलांस समेत अन्य साक्ष्य भी पुलिस कार्यप्रणाली पर सवाल उठा रहे थे।
अनिल शर्मा ने इस मामले की जांच सीबीआई से कराने की मांग की। हाईकोर्ट के आदेश पर सीबीआई ने 18 अगस्त को प्राथमिक जानकारी को दर्ज कर जांच शुरू कर दी। इसके अगले ही दिन हाईकोर्ट ने इस मामले में सीबीआई को मुकदमा दर्ज करने के आदेश दिए। सीबीआई देहरादून शाखा ने चैकी प्रभारी बेरिया दौलत प्रकाश चंद टम्टा, सिपाही त्रिभुवन सिंह, चंदन सिंह बिष्ट, हरीश गिरी और स्पेशल पुलिस अफसर (कोरोना काल में जनता के बीच से बनाए गए थे) परवेज अहमद व राजवंत सिंह के खिलाफ गंभीर धाराओं में मुकदमा दर्ज कर लिया है। मुकदमे की जांच इंस्पेक्टर हरीश सिंह कर रहे हैं। 

आईपीसी की धाराएं जिन पर मुकदमा हुआ है दर्ज
120बी-आपराधिक षडयंत्र रचना 
166- लोकसेवक रहते कानून की अवज्ञा करते हुए किसी को चोट पहुंचाना 
167-अशुद्ध दस्तावेज रचना
193- कोर्ट में झूठे साक्ष्य पेश करना। 
201- साक्ष्य छुपाना या मिटाना 
211- किसी को नुकसान पहुंचाने की नियत से झूठा आरोप लगाना। 
220-निर्दोष व्यक्ति को जबरन रोककर रखना। 
323- मारपीट करना। 
342- गलत तरीके से किसी भी व्यक्ति को रोककर रखना। 
348-ज 465-जालसाजी।

गंभीर आरोप लगने से निलंबित हुए हरिद्वार जिले के जिला शिक्षा अधिकारी

जिला शिक्षा अधिकारी बेसिक शिक्षा हरिद्वार ब्रह्मपाल सिंह सैनी को कुछ स्कूलों में गलत मान्यता देने और कई तरह की अनियमितताओं के आरोप लगने से निलंबित कर दिया है। शिक्षा सचिव आर मीनाक्षी सुंदरम ने आदेश जारी करते हुए कहा कि निलंबन के दौरान वह निदेशक माध्यमिक शिक्षा के कार्यालय में संबद्ध रहेंगे।

बता दें कि जिला शिक्षा अधिकारी बेसिक शिक्षा हरिद्वार ब्रह्मपाल सिंह सैनी अपने गृह जनपद में तैनात हैं। उन पर एक शिक्षक को गलत सत्रांत लाभ देने का भी आरोप है। शिक्षा सचिव आर मीनाक्षी सुंदरम ने कहा कि हाईकोर्ट नैनीताल में दाखिल जनहित याचिका पदम कुमार बनाम उत्तराखंड राज्य व अन्य में 30 जुलाई 2020 को पारित आदेश के क्रम में जिला शिक्षा अधिकारी को पांच अगस्त 2020 को आरोप पत्र दिया गया था। कहा कि आरोप गंभीर प्रकृति के हैं, जिसे देखते हुए उन्हें निलंबित कर दिया गया है।

राज्य सरकार 35 बीघा भूमि पर हुए अतिक्रमण को तीन माह के भीतर करेगी ध्वस्त

नैनीताल हाईकोर्ट के कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश रविकुमार मलिमथ एवं न्यायमूर्ति एनएस धानिक की खंडपीठ के समक्ष ऋषिकेश के वीरभद्र में स्वामी चिदानंद द्वारा किए गए अतिक्रमण मामले की सुनवाई हुई। खंडपीठ ने राज्य सरकार को तीन माह का अल्टीमेटम देकर 35 बीघा वन भूमि पर हुए अतिक्रमण को ध्वस्त करने का आदेश दिया है। तीन माह के भीतर हुई कार्रवाई से सरकार को न्यायालय के समक्ष अपनी रिपोर्ट भी पेश करनी होगी।

मामले के अनुसार हरिद्वार निवासी अर्चना शुक्ला ने जनहित याचिका दायर कर कहा था कि ऋषिकेश के निकट वीरपुरखुर्द वीरभद्र में स्वामी चिदानंद मुनि ने रिजर्व फॉरेस्ट की 35 बीघा भूमि पर कब्जा करके वहां 52 कमरे, एक बड़ा हॉल और गोशाला का निर्माण कर लिया है।

कोर्ट का फैसला आने के बाद बोले मुख्यमंत्री, राज्य गठन के बाद सबसे बड़ा सुधारात्मक कदम

मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत ने चारधाम देवस्थानम प्रबंधन बोर्ड पर माननीय उच्च न्यायालय के निर्णय का स्वागत किया है। मुख्यमंत्री आवास में आयोजित प्रेस वार्ता में मुख्यमंत्री ने कहा कि भविष्य की आवश्यकताओं, श्रद्धालुओं की सुविधाओं और इंफ्रास्ट्रक्चर के विकास की दृष्टि से बोर्ड का गठन किया गया है। पिछले वर्ष 36 लाख श्रद्धालु चारधाम यात्रा पर आए। आने वाले समय में इसमें बहुत वृद्धि होने की सम्भावना है। इसलिए इतनी बड़ी संख्या मे आने वाले यात्रियों की सुरक्षा हमारी प्राथमिकता है। माननीय उच्च न्यायालय ने एक तरह से राज्य सरकार के निर्णय पर अपनी मुहर लगाई है।
मुख्यमंत्री ने कहा कि हम स्पष्ट करना चाहते हैं कि तीर्थ पुरोहित और पण्डा समाज के लोगों के हक हकूक और हितों को सुरक्षित रखा गया है। जहां भी धर्म और संस्कृति का विषय होता है, वहां परम्पराओं का बहुत महत्व है। हमने चारधाम के संबंध में सभी परम्पराओं का बनाए रखा है। सैंकड़ों सालों से स्थानीय तीर्थ पुरोहितों और पण्डा समाज ने चारधाम की पवित्र परम्पराओं का संरक्षण किया है। विपरीत परिस्थितियों के होने पर भी दूर दूर से आने वाले श्रद्धालुओं का ध्यान रखा है। मुख्यमंत्री ने कहा कि उन्होंने स्वयं देखा है कि बरसात में रास्ते बंद हो जाने पर किस प्रकार तीर्थ पुराहितों ने श्रद्धालुओं के रूकने, खाने आदि की व्यवस्था की है। इसी भावना के कारण उत्तराखण्ड को देवभूमि का मान मिलता है। मुख्यमंत्री ने कहा कि तीर्थ पुराहितों ने यहां की परम्पराओं का संरक्षण किया है और देवभूमि का मान बढ़ाया है, उनके हितों की रक्षा, सरकार की सर्वोच्च प्राथमिकता है। चारधाम देवस्थानम बोर्ड को लेकर किसी प्रकार का संशय नहीं होना चाहिए। राज्य गठन के बाद चारधाम देवस्थानम बोर्ड का गठन सबसे बड़ा सुधारात्मक कदम है। माननीय उच्च न्यायालय के निर्णय को किसी की जीत हार से जोड़कर नहीं देखना चाहिए। यह राजनीतिक विषय नहीं है। आने वाले समय में चारधाम देवस्थानम बोर्ड, चारधाम यात्रा के प्रबंधन की दृष्टि से बहुत महत्वपूर्ण होने जा रहा है।

देना होगा बाजार मूल्य पर किराया, राज्य सरकार का अधिनियम अंसवैधानिक

हाईकोर्ट नैनीताल ने एक महत्वपूर्ण निर्णय में पूर्व मुख्यमंत्रियों को बड़ा झटका दिया है। कोर्ट ने पूर्व मुख्यमंत्रियों को सुविधा देने वाले अधिनियम-2019 को अंसवैधानिक घोषित करते हुए उसे निरस्त कर दिया है। सभी पूर्व मुख्यमंत्रियों को अब बाजार भाव के हिसाब से किराया चुकाना होगा।
अधिवक्ता कार्तिकेय हरिगुप्ता ने बताया कि न्यायालय ने भारत के संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन मानते हुए यह निर्णय दिया। अधिवक्ता कोर्ट ने कहा कि अधिनियम के प्रावधान स्थापित नियमों का उल्लंघन करते हैं। न्यायालय ने अधिनियम को भारत के संविधान के अनुच्छेद 202 से 207 के उल्लंघन में पाया है। अब सभी पूर्व मुख्यमंत्रियों को बाजार मूल्य से किराए का भुगतान करना होगा।
कोर्ट ने कहा कि राज्य के पूर्व मुख्यमंत्रियों के रूप में उन्हें दी गई अन्य सभी सुविधाओं के लिए खर्च किए गए धन की गणना करने और उसकी वसूली के लिए राज्य उत्तरदायी होगा। कोर्ट ने कहा कि अधिनियम के प्रावधान शक्तियों को अलग करने के सिद्धांत का उल्लंघन करते हैं। मुख्य न्यायाधीश रमेश रंगनाथन एवं न्यायमूर्ति आरसी खुल्बे की खंडपीठ ने 23 मार्च को मामले में सभी पक्षकारों को सुनने के बाद निर्णय सुरक्षित रख लिया था। इसके बाद मंगलवार को निर्णय सुनाया गया है।
मामले के अनुसार, देहरादून की रुलक संस्था ने राज्य सरकार के उस अध्यादेश को जनहित याचिका के माध्यम से चुनौती दी थी, जिसके द्वारा राज्य सरकार ने पूर्व मुख्यमंत्रियों के किराए को बाजार रेट के आधार पर भुगतान करने से छूट दे दी थी। याचिकाकर्ता की ओर से कहा गया कि सभी पूर्व सीएम पर करीब 15 करोड़ रुपये का बकाया है। इसके अलावा, किराया करीब पौने तीन करोड़ है, जिसकी वसूली के आदेश कोर्ट ने पिछले वर्ष छह माह में करने के आदेश दिए थे।

क्या है अधिनियम
रूलक सामाजिक संस्था के चेयरपर्सन अवधेश कौशल की ओर से हाईकोर्ट में पूर्व मुख्यमंत्रियों को दी जाने वाली सुविधाओं के खिलाफ जनहित याचिका दाखिल की गई थी। इस पर कोर्ट ने पूर्व मुख्यमंत्रियों से बकाया वसूलने के आदेश जारी किए थे। इस आदेश के खिलाफ पूर्व सीएम व महाराष्ट्र के राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी और विजय बहुगुणा ने हाईकोर्ट में रिव्यू याचिका दाखिल की लेकिन हाईकोर्ट ने उनकी नहीं सुनी और उन्हें पुराना बकाया चुकाने का आदेश जारी रखा।
इसमें भगत सिंह कोश्यारी ने बकाया चुकाने की हैसियत न होने की बात कही तो फिर कोर्ट ने चेतावनी दी थी कि क्यों न उनकी संपत्ति की जांच करा ली जाए। हाईकोर्ट में जब सरकार तथ्यों और तर्कों के आधार पर कुछ न कर पाई तो भगत सिंह कोश्यारी के लिए सीएम त्रिवेंद्र सिंह रावत सभी पूर्व मुख्यमंत्रियों का बकाया माफ करने और सुविधाएं जारी रखने के लिए अध्यादेश ले आए। अधिवक्ता की ओर से बताया गया कि कैबिनेट में गुपचुप निर्णय करके अध्यादेश को मंजूरी के लिए राजभवन भेज दिया गया था। उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्रियों को सरकारी बंगला सहित अन्य सुविधाएं देने के मामले में सरकार ने राज्य का एक्ट नहीं बनाया।
सरकार ने उत्तर प्रदेश का एक्ट लागू करना स्वीकार किया लेकिन उसे संशोधित नहीं किया। पिछले वर्ष कोर्ट में दिए गए हलफनामे में लागू एक्ट में लखनऊ का उल्लेख कर दिया, जबकि उत्तर प्रदेश के अधिनियम में साफ तौर पर अंकित था कि सुविधा सिर्फ लखनऊ में दी जा सकती है। इसलिए राज्य सरकार को यह स्वीकार करना पड़ा कि उत्तराखंड में इस संबंध में कोई अधिनियम प्रभावी नहीं है।
वहीं, अधिवक्ता ने बताया कि 1981 में यूपी में बने अधिनियम में साफ उल्लेख था कि मुख्यमंत्री, मंत्रियों को पद पर बने रहने तक सरकारी आवास मुफ्त मिलेगा। पद से हटने के 15 दिन में उन्हें आवास खाली करना होगा। 1997 में उत्तर प्रदेश सरकार ने इस नियम में बदलाव कर कहा कि अब पूर्व मुख्यमंत्रियों को आजीवन सरकारी आवास आवंटित किया जाएगा।
एक्ट में यह भी उल्लेख था कि आवास सिर्फ लखनऊ में ही दिया जाएगा, बाहर नहीं। 9 नवंबर 2000 को उत्तराखंड बनने के बाद यह नियम यहां निष्प्रभावी हो गया। राज्य सरकार ने यूपी के एक्ट को उत्तराखंड के लिए मोडिफाई नहीं किया लेकिन कोर्ट में बताया कि सरकार ने 2004 में लोकसेवकों को प्रतिमाह एक हजार रुपये किराये पर आवास देने के रूल्स बनाए थे। इसमें कहा गया कि ट्रांसफर होने के बाद अधिकतम तीन माह तक लोकसेवक आवंटित आवास में रह सकते हैं, फिर हर हाल में खाली करना होगा। याचिकाकर्ता के अधिवक्ता कार्तिकेय हरिगुप्ता ने बताया कि रूल्स सरकारी लोक सेवकों के लिए है, यह पूर्व मुख्यमंत्रियों पर लागू नहीं हो सकता।

स्थायी फीस निर्धारण समिति का शीघ्र गठन किया जाएः त्रिवेन्द्र

मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत ने उत्तराखण्ड आयुर्वेद विश्वविद्यालय के निजी आयुर्वेदिक कालेजों के आन्दोलनरत छात्रों के आन्दोलन को समाप्त करने के लिये प्रभावी कार्यवाही के निर्देश दिये हैं।

मुख्यमंत्री ने कहा कि इस सम्बन्ध में उच्च न्यायालय के निर्देशों का अनुपालन सुनिश्चित करने के लिये भी सभी सम्बन्धित को निर्देश दिये जाएं। उन्होंने कहा कि छात्रों का लम्बे समय तक आन्दोलनरत रहने से उनकी पढ़ाई प्रभावित हो रही है। अतः इस सम्बन्ध में उच्च न्यायालय के स्तर से समय समय पर जारी निर्देशों का गहनता से अनुश्रवण किया जाये।

गुरूवार को सचिवालय में आयुष विभाग से सम्बन्धित बैठक में मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र ने कहा कि आयुर्वेद छात्रों की फीस निर्धारण हेतु स्थायी फीस निर्धारण समिति के शीघ्र गठन की भी कार्यवाही सुनिश्चित की जाए। समिति के अध्यक्ष हेतु किसी न्यायाधीश को नामित करने के लिए पुनः उच्च न्यायालय से अनुरोध किया जाय। इस प्रकरण पर फीस निर्धारण समिति के निर्णयानुसार अग्रिम कार्यवाही सुनिश्चित की जाय।