जानिए लिंग परिवर्तन कराने के पीछे का सच, हैरान करने वाली कहानी

मुंबई में इन दिनों एक नया मामला सामने आया है, जिसमें एक महिला जो कुछ सालों पहले पुरुष हुआ करती थी और एक पुरुष जो पहले महिला हुआ करता था। दोंनों ने शादी करने का फैसला लिया है। तीन साल पहले दोनों मुंबई के एक अस्पताल में अपना लिंग परिवर्तन कराने आए थे। वहीं पर उन दोनों की पहली ही मुलाकात प्यार में बदल गई। अब अगले महीने वे शादी के बंधन में बंधने जा रहे हैं। केरल का रहने वाला आरव अप्पुकुट्टन 46, मुंबई में एक अस्पताल में अपना लिंग परिवर्तन कराने गया था। उसी अस्पताल में सुकन्या कृष्णन 22, भी वहां अपने लिंग का परिवर्तन कराने गयी हुयी थी। बस फिर क्या था, दोनों ने एक दूसरे को देखा, प्यार कर बैठे और अगले महीने शादी करने जा रहे है। सुकन्या बताती हैं, हम दोनों के माता-पिता ने बचपन से ही उन्हें किन्नरों की तरह ट्रीट किया था। आरव ने कहा, मैंने सोचा भी नहीं था कि हमें इस तरह प्यार हो जाएगा। हम दोनों ने पूरे रीति-रिवाज के साथ मंदिर में शादी करने का फैसला किया है। हमने एक बच्चा भी गोद लेने का फैसला किया है।
मुलाकात से पहले की कहानी
आरव ने बताया, जब मैं 13 साल का हुआ तब मुझे पता चला कि मैं औरत नहीं हूं। मुंबई जाने के बाद जब मैंने लड़कों के कपड़े पहने और उनके जैसे हेयरस्टाइल रखी। मैं अपना लिंग परिवर्तन कराने दुबई गया। एक साल मैं पूरी तरह से औरत से आदमी में बदल चुका था। यहां तक कि मेरे दाढ़ी और मूंछें भी आनी शुरु हो गई थी।
वहीं सुकन्या कहती है कि परिवार मुझे लड़कों के कपड़े पहनने को और लड़कों के साथ खेलने को कहते थे। एक बार तो एयरपोर्ट पर मुझे ये कहकर रोक दिया गया कि मेरे आधारकार्ड से मेरा चेहरा मैच नहीं कर रहा है। मैं इस समस्या को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मिलना चाहती हूं कि हमें किस समस्या से गुजरना पड़ रहा है।

सीएम को ट्वीट कर की शिकायत, अगले ही दिन हुआ समाधान

आज के दौर में हर कोई सोशल मीडिया का बखूबी उपयोग करता नजर आ सकता है और यह आम लोगों से संवाद स्थापित करने और उनकी समस्याओं के निस्तारण में अहम भूमिका निभाता है, तो ऐसे में शासन भी इससे अछुता नहीं है। ऐसा ही एक वाकया सामने आया है जिसमें मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने सोशल मीडिया के जरिये समस्या का निदान किया है। मुख्यमंत्री सोशल मीडिया पर सक्रिय रहते हैं, उन्होंने सभी जिलाधिकारियों और पुलिस अधीक्षकों को भी सोशल मीडिया पर सक्रिय रहने को कहा है। मुख्यमंत्री की अपील पर अल्मोड़ा की जिलाधिकारी ईवा आशीष श्रीवास्तव ने भी सोशल मीडिया का उपयोग करके लोगों की समस्याएं सुलझाने का बेहतरीन उदाहरण पेश किया है। दरअसल अल्मोड़ा के चौखुटिया की रहने वाली अंबुली देवी को पिछले 6 महीन से समाज कल्याण विभाग द्वारा विधवा पेंशन नहीं मिली। ऐसे में नम्रता कांडपाल नाम की महिला ने ट्वीटर के माध्यम से मुख्यमंत्री को शिकायत लिखी। मुख्यमंत्री ने शिकायत को ट्वीटर पर ही अल्मोड़ा की जिलाधिकारी को फॉरवर्ड करते हुए कार्रवाई के आदेश दिए। जिस पर डीएम ने तुरन्त संज्ञान लेते हुए कार्रवाई की। डीएम ने ट्वीटर पर ही शिकायतकर्ता से अंबुली देवी के विवरण उपलब्ध कराने को कहा जिस पर आगे की कार्रवाई करते हुए जिलाधिकारी ने अगले ही दिन उनकी पेंशन का चेक जारी किया। जिलाधिकारी, अल्मोडा ने मुख्यमंत्री और शिकायतकर्ता को ट्वीटर पर टैग करते हुए चेक की फोटो एवं विधवा पेंशन की धनराशि जारी किये जाने का आदेश पोस्ट किये। मुख्यमंत्री ने सभी जिलाधिकारियों से सोशल मीडिया पर सक्रिय रहकर इसी प्रकार जनता की समस्याओं के त्वरित निस्तारण की अपेक्षा की है। मुख्यमंत्री ने निर्देश दिए है कि जिन जनपदों में जिलाधिकारी एवं पुलिस अधीक्षकों द्वारा सोशल मीडिया का उपयोग प्रारम्भ नहीं किया गया है वे तत्काल इसका उपयोग जन समस्याओं के निस्तारण और महत्वपूर्ण सूचनाओं के प्रसार हेतु करें।

बाढ़ पीड़ितों ने लगाए क्षेत्रीय सांसद के पोस्टर, कहा मिले तो हमें बताए

एक ओर जहां बरसात का मौसम चल रहा है और ऐसे में बाढ़ का आना लाजमी है। बिहार के 18 जिले इस वक्त बाढ़ की त्रासदी झेल रहे हैं इन बाढ़ पीड़ितों की कोई सुध नहीं ले रहा है। मदद न होने की वजह से उनका गुस्सा और आक्रोश बढ़ता जा रहा है। दरभंगा जिले में भी बाढ़ में भारी तबाही मचाई है। अब तक 12 लोगों की मौत भी हो चुकी है। ऐसे में बाढ़ पीड़ितों का गुस्सा अपने क्षेत्र के सांसद, पूर्व क्रिकेटर व स्थानीय सांसद कीर्ति आजाद पर निकला है। दरभंगा की सड़कों पर बाढ़ पीड़ितों ने निलंबित बीजेपी सांसद कीर्ति आजाद के गुमशुदगी की कई पोस्टर चिपकाए हैं। जिसमें कहा गया है कि चुनाव जीतने के बाद वह अपने क्षेत्र से गायब हो गए हैं।
बिहार के इस क्षेत्र में जगह-जगह सांसद कीर्ति आजाद के पोस्टर चिपकाए गए है। चिपकाए गए पोस्टरों में कीर्ति आजाद पर तंज कसा गया है और कहा गया है कि बाढ़ पीड़ित अपने सांसद कीर्ति आजाद की तलाश कर रहे हैं और जिस किसी को भी वह मिल जाए वह तुरंत बाढ़ पीड़ितों को सूचित करें। यहां की जनता उनका इन्तजार कर रही है। लोगों को उम्मीद थी कि आपदा के वक्त वह अपने इलाकों के लोगों से मिलकर उनका दुख-दर्द बांटेंगे और मदद का भरोसा देंगे, लेकिन आजाद के गायब होने से स्थानीय लोग काफी नाराज हैं। दरअसल में कीर्ति आजाद बीजेपी की टिकट से चुनाव जीतकर आए थे लेकिन वह लगातार डीडीसीए घोटाले मामले में अरुण जेटली पर हमलावर थे जिसके बाद उन्हें पार्टी विरोध गतिविधियों के चलते बीजेपी ने निलंबित कर दिया था। बिहार में बाढ़ की स्थिति भयावह रूप धारण कर चुकी है। सीएम नीतीश कुमार ने खुद कहा था कि उन्होंने जीवन में अबतक इतनी भयंकर बाढ़ नहीं देखी है। राज्य भर बाढ़ से अबतक 253 लोगों की मौत हो चुकी है और कई इलाके पूरी तरह जलमग्न हैं।

ब्लू व्हेल का दिखा असर, नहीं ले जा सकेंगे स्कूलों में स्मार्ट फोन

आज के दौर में क्या बच्चे और क्या बड़े। सभी ऑनलाइन गेम से अछूते नहीं है और फिर ऐसे में आया ऑनलाइन गेम ब्लू व्हेल। बच्चों और किशोरों को खुदकुशी के लिए उकसाने वाले ऑनलाइन गेम ब्लू व्हेल के खतरे के मद्देनजर केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड (सीबीएसई) ने स्कूलों में इंटरनेट और इलेक्ट्रॉनिक गैजेट्स के उपयोग के लिए नये दिशा-निर्देश जारी किए हैं, जिसमें बोर्ड की तरफ सेे स्कूलों को यह साफ तौर पर निर्देश दिया गया है कि स्कूल में पढ़ने वाले बच्चों स्मार्टफोन, टैबलेट, आई पैड, लैपटॉप जैसे इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस बिना इजाजत स्कूल में नहीं ला सकेंगे। साथ ही उन्होंने कहा कि बच्चों द्वारा इस्तेमाल कर रहे कंप्यूटर्स को ऐसे जगह रखा जाए जहां से उस पर नजर रखा जा सके। इसके साथ ही स्कूल को यह भी निर्देश दिया गया है कि छात्रों को इंटरनेट के इस्तेमाल करने पर सुरक्षा और प्रभाव के बारे में बताया जाए। इंटरनेट के इस्तेमाल करने पर डिजिटल निगरानी की व्यवस्था हो। बच्चों को केवल पहले से चयन किए हुए वेबसाइट तक पहुंचने की अनुमति देना होगा। उन्होंने कहा कि ब्लू व्हेल ही नहीं, बल्कि सभी जानलेवा वेबसाइट्स पर भी रोक लगनी चाहिए। सीबीएसई के परिपत्र में कहा गया है कि यह सूचित किया जाता है कि दृश्य या श्रव्य सामग्री को संग्रहित, रिकॉर्ड या प्ले कर सकने में समक्ष स्मार्ट मोबाइल फोन, टैबलेट, आई पैड, लैपटॉप जैसे इलेक्ट्रॉनिक संचार उपकरणों को स्कूल या स्कूल बसों में बिना अनुमति के नहीं लाया जाए। स्कूल में प्राचार्य और स्कूल बसों में परिवहन प्रभारी इस बात का ध्यान रखें कि मोबाइल फोन नहीं लाया जा सके।

चीन की धमकियों से इस छोटे देश को नहीं पड़ा कोई फर्क

हर किसी देश पर अपनी दादागिरी दिखाने वाले चीन को इस बार एक छोटे से देश बोत्सवाना ने करारा जवाब दिया है। बोत्सवाना के राष्ट्रपति इयान खामा ने चीन को दो टूक कहा है कि उनका देश चीन का गुलाम नहीं है। विश्व में हीरों की खानों के लिए मशहूर बोत्सवाना चीन की बार-बार की धौंस से तंग आकर इयान खामा ने कहा कि हम चीन की धमकियों से डरते नहीं हैं और बोत्सवाना चीन की कॉलोनी नहीं है।
दरअसल चीन आध्यात्मिक गुरु दलाई लामा के प्रस्तावित दौरे के लेकर बोत्सवाना को राजनीतिक और कूटनीतिक परिणाम भुगतने की धमकी दे रहा था। दलाई लामा 17-19 अगस्त तक बोत्सवाना की राजधानी गेबोरोनी के दौरे पर जाने वाले थे। दलाई लामा का ये दौरा निजी बताया गया। इसके बावजूद चीन इस दौरे का विरोध कर रहा था।
हालांकि दलाई लामा का ये दौरा बाद में रद्द हो गया। जिसके बाद चीन ने कहा है कि उसके बोत्सवाना के साथ संबंध बेहतर तरीके से आगे बढ़ते रहेंगे। वह बोत्सवाना के साथ अपने संबंधों को अधिक महत्व देता है। दलाई लामा ने थकावट की वजह से बोत्सवाना का दौरा रद्द किया।
आंतरिक मामलों में चीन के दखल को देख इयान खामा बौखला़ गए। उन्होंने कहा कि उनका देश चीन का गुलाम नहीं है। बोत्सवाना गार्जियन को दिये इंटरव्यू में राष्ट्रपति इयान खामा ने कहा कि उन्होंने तरह-तरह की धमकियां दी। चीन अपना राजदूत वापस बुला लेगा, दोनों देश के बीच रिश्ते खराब हो जाएंगे। चीन दूसरे अफ्रीकी देशों की मदद से बोत्सवाना को अलग-थलग कर देगा। दलाई लामा पर खामा ने कहा कि हम उम्मीद करते हैं कि उनकी सेहत जल्द ठीक होगी और फिर उनका बोत्सवाना में स्वागत है, वे यहां आएं और घूमें।

सीएम के प्रयासों से गढ़वाली व कुमाऊंनी बोली को मिलेगा बढ़ावा

गढ़वाली व कुमाऊंनी बोली के प्रचार-प्रसार के लिए एक अनूठी पहल की गई है। मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने कहा कि राज्य सरकार द्वारा गढ़वाली व कुमाऊंनी बोली को संविधान की 8 वीं अनुसूची में शामिल किए जाने के प्रयास किए जा रहे है। उन्होंने कहा कि गढ़वाली व कुमाऊंनी बोली को दर्जा दिलाने की मांग पहले भी संसद में भी उठाई जा चुकी है और यह प्रयास जारी है।
उत्तराखंड की लोक भाषा के प्रचार-प्रसार के लिए अब मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र द्वारा सोशल मीडिया में भी गढ़वाली, कुमाऊंनी व उत्तराखंड की अन्य बोली भाषा में आम-जन से संवाद स्थापित किया जा रहा है। जिसकी शुरूआत आज मुख्यमंत्री ने अपने ट्वीटर अकाउंट में गढ़वाली व कुमाऊंनी बोली में ट्वीट कर की गई।
मुख्यमंत्री ने कहा कि हमें सदैव अपनी संस्कृति, बोली भाषा से जुड़ाव रखना चाहिए। उन्होंने कहा कि आज का युवा सोशल मीडिया में अधिक सक्रिय है। सोशल मीडिया में अपनी लोक भाषा गढ़वाली, कुमाऊंनी व उत्तराखंड की अन्य बोली भाषा में संवाद करने से युवा पीढ़ी के साथ-साथ भावी पीढ़ी को भी अपनी बोली व संस्कृति से जुड़ने का मौका मिलेगा। सीएम ने लोगों से अपेक्षा की है कि वे समय-समय पर सोशल मीडिया पर गढ़वाली, कुमाऊंनी व उत्तराखंड की अन्य बोली भाषा में भी उनसे संवाद स्थापित करेंगे।

ये कैसा मजाक: सरकार की नजर में 150 रुपये में आती हैं किताब

ऋषिकेश। दयाशंकर पाण्डेय
शिक्षा का अधिकार (आरटीई) के तहत प्राइवेट स्कूलों में पढ़ रहे छात्रों को सरकार 150 रुपये सालाना किताबें खरीदनें को देती है जबकि इसके विपरीत छात्रों की किताबों के दाम आसमान छू रहे है। आर्थिक रूप से कमजोर अभिभावकों के कॉपी किताब और ड्रेस बनवाने में पसीने छूट रहे हैं।
शिक्षा का अधिकार कानून (आरटीई) के तहत प्राइवेट स्कूलों में आर्थिक रूप से कमजोर बच्चों को पढ़ने का मौका मिलता है। आरटीई के तहत बच्चों की फीस सरकार स्कूलों को देती है। सरकार बच्चों को स्कूली ड्रेस, किताब खरीदने और हाजिरी के हिसाब से भी खाते में पैसा उपलब्ध कराती है लेकिन किताब खरीदने के नाम पर सालाना मात्र 150 रुपये छात्रों को देती है।
स्कूल ड्रेस के नाम पर भी 400 रुपये सालाना छात्रों के एकाउंट में आते हैं। आरटीई के तहत प्राइवेट स्कूलों में अपने बच्चों को पढ़ाने का ख्वाब देख रहे अभिभावकों को तब गहरा झटका लगता है जब बाजार में कक्षा एक के छात्र की किताब खरीदने में अभिभावकों को हजारों रुपये का बिल चुकाना पड़ता है। दबी आवाज में अभिभावक स्वीकार कर रहे हैं कि महंगे स्कूलों में फ्री एडमिशन और फीस नहीं देने के बाद भी उनका बजट गड़बड़ा रहा है।

सरकार 150 रुपये किताबों के प्रकाशन में आने वाली लागत के अनुसार छात्र के एकांउट में डालती है। चूंकि प्राइवेट स्कूलों का सिलेबस एक जैसा नहीं होता है तो किताबों की लागत अधिक आना स्वाभाविक है।
नरेन्द्र शर्मा, ब्लाक समन्वयक डोईवाला।

केंद्र और राज्य सरकार की योजनाओं को जनता तक पहुंचायेंगे निर्दलीय समर्थक

ऋषिकेश।
ऋषिकेश विधानसभा सीट पर भाजपा से बागी होकर चुनाव लड़े निर्दलीय प्रत्याशी संदीप गुप्ता ने श्यामपुर में अपने समर्थकों के साथ बैठक की। चुनाव में मिली हार और भविष्य की रणनीति को लेकर चर्चा की। संदीप गुप्ता ने केन्द्र में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और राज्य के ईमानदार मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत की नीतियों और जन कल्याणकारी योजनाओं का समर्थन किया। कहा कि भाजपा से कभी भी उनका विरोध नहीं रहा है। उनका विरोध पार्टी प्रत्याशी के आचरण और कार्यकर्ताओं से व्यवहार को लेकर रहा है, जो आगे भी जारी रहेगा। कहा कि विधानसभा क्षेत्र में विधायक निधि से होने वाले कार्यों व गुणवत्ता पर नजर रखकर समय-समय पर सरकार और जनता को अवगत कराएंगे। भाजपा के पूर्व जिलाध्यक्ष ज्योति सजवाण ने कहा कि सीएम पार्टी विशेष के न होकर राज्य की जनता के होते है। राज्य की जनता को उन्हें शुभकामनाएं एवं बधाई देने का अधिकार है। जबकि कुछ लोग उनके सीएम को बधाई देने पर ऐतराज जताकर अपनी ओछी मानसिकता का परिचय दे रहे है।
बैठक में गोविन्द अग्रवाल, बलवीर चौहान, अनिल भट्ट, धनवीर जेठूडी, गम्भीर राणा, परमेंद्र बिष्ट, अख्तर अहमद, भोला सिंह रावत, किशन सिंह नेगी, दिनेश पयाल, जबर सिंह रौतेला, देवानन्द बडोनी, हरीश उप्रेती, मनोज जखमोला, रोशन उपाध्याय, सुनिल कुटलेहडिया, अनिल भण्डारी, भाग सिंह चौहान, बृजमोहन कंडवाल, तोताकृष्ण भट्ट, लक्ष्मी सजवाण, पुष्पा मित्तल, प्रभा थपलियाल, रीतू खंडूरी, सुनीता डिमरी, प्रभा पैन्यूली, ममता पोखरियाल, गुड्डी देवी, पार्वती उपाध्याय आदि उपस्थित थे।

खतरे में नैनीताल झील की प्राकृतिक सुदंरता

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नैनीताल। प्रयाग पाण्डे

नैनीताल – देश -दुनिया के सैलानियों के आकर्षण का केंद्र नैनीताल की खूबसूरत झील इस दौरान अपने इतिहास के सबसे कठिन दौर से गुजर रही है। मिट्टी-मलबा, कूड़ा-करटक भर जाने से पैदा हुए प्रदूषण के साथ जल स्तर में आई जबरदस्त गिरावट समेत अनेक समस्याओं से जूझ रही नैनी झील के किनारों को अब झील के रखवालों ने ही मिट्टी ,पत्थर और सीमेंट से पाटना शुरू कर दिया है। नैनीताल और आसपास के इलाकों को रोजी-रोटी ,पानी और पहचान देने वाली झील अब खुद यतीम हो गई है।
नैनीताल की झील की कुदरती बनावट में ही इसकी असल खूबसूरती छिपी है। दुर्भाग्य से झील के रखरखाव के लिए जिम्मेदार सरकारी महकमे ही इसकी प्राकृतिक शोभा को बदरंग करने पर आमादा हैं। मजेदार बात यह कि यह क्षरण एशियन विकास बैंक की माली मदद से धरोहरों के संरक्षण के नाम पर हो रहा है। उत्तराखण्ड के पर्यटन महकमे की हेरिटेज भवनों के संरक्षण की एक ऐसी ही योजना नैनी झील के क्षरण की सबब बन गई है।
उत्तराखण्ड के पर्यटन विभाग ने हेरिटेज भवनों को सहेजने के लिए योजना बनाई है। इस योजना के लिए एशियन विकास बैंक से बेहिसाब आर्थिक मदद ली जा रही है। योजना में नैनीताल को भी शामिल किया गया है। योजना के तहत “कल्चर हेरिटेज एंड अर्बन प्लेस मेकिंग इन नैनीताल” नाम से नैनीताल नगर में विभिन्न कामों के लिए तकरीबन अट्ठाइस करोड़ रूपए मंजूर हुए हैं। इन कामों का ठेका दिल्ली की “सिम्पलेक्स” नाम को दिया गया है।
धरोहरों को संरक्षित करने के नाम पर चल रही इस योजना के तहत इन दिनों नैनीताल की मालरोड में तालाब के किनारे स्थित दुर्गा साह नगर पालिका पुस्तकालय के जीर्णोद्धार का काम चल रहा है। ब्रिटिशकाल में बने बेहद हल्के पुस्तकालय शेड को संरक्षित करने के बहाने तालाब के एक बड़े हिस्से में पत्थरों की चौड़ी दीवार देकर उस हिस्से को मिट्टी-मलबे से पाटने का काम चल रहा है। झील के भीतर इस बेतुके एवं कुरूप निर्माण से झील की प्राकृतिक सुंदरता खतरे में है। निहायत गैर जरूरी और नासमझी भरे इस निर्माण से झील का भौगोलिक क्षेत्रफल और जल संग्रहण क्षमता दोनों का कम होना तय है।
दुर्गा साह नगर पालिका पुस्तकालय का यह शेड करीब एक सौ साल पहले बना था। शुरुआत में यह वाईडब्ल्यूसीए का बोट हाउस था। 1937 में नगर पालिका ने इस शेड को पुस्तकालय के लिए अधिगृहीत कर लिया। यह शेड तालाब के किनारे पत्थर के पिलरों के ऊपर टिका है। इसकी पर्दा दीवारें हल्के टिन से बनाई गई हैं। इस शेड के मूल ढांचे के रहते तालाब के भौगोलिक क्षेत्रफल और जल संग्रहण क्षमता पर कोई प्रतिकूल असर नहीं पड़ रहा था। इस शेड के नीचे बराबर पानी रहा करता था। पर अब एयर कंडीशन कमरों में बैठे योजनाकारों को इस शेड को संरक्षित करने के वास्ते तालाब के भीतर बदनुमा दीवार लगाने के अलावा और कोई तकनीक नहीं सूझ रही है।
वहीं, दूसरी ओर नैनीताल की झील की देख-रख और रखरखाव के लिए सीधे तौर पर जिम्मेदार लोक निर्माण विभाग ने तल्लीताल क्षेत्र में झील के भीतर एक पक्का कैचपिट बना डाला है। इससे तालाब का न केवल अंदरूनी क्षेत्रफल कम हुआ है, बल्कि जल संग्रहण क्षमता भी घट गई है। लोनिवि के अधिशासी अभियंता एस. के. गर्ग के मुताबिक यह कैचपिट झील में मलबा जाने से रोकने के लिए बनाया गया है। हकीकत यह है कि कैचपिट झील के मौजूद जल स्तर करीब पांच फिट में तालाब में बनाया गया। जबकि इस मौसम में तालाब का जल स्तर साढ़े नौ फिट होना चाहिए था। तालाब का अधिकतम जल स्तर बारह फिट तक रखे जाने की व्यवस्था है। भविष्य में झील में मानक के मुताबिक पानी भरा तो इस कैचपिट का डूबना तय है। ऐसी सूरत में इस कैचपिट की उपयोगिता क्या होगी, इसका जबाब इंजीनियरों के पास नहीं है। गौरतलब बात यह है कि उत्तराखण्ड उच्च न्यायालय ने जिले की सभी झीलों के तीस मीटर के दायरे में निर्माण कामों पर पाबंदी लगाने के आदेश दिए हैं।

एक मां बोलीं, बताइए बेटी को कहां पेश करूं?

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लखनऊ।
दयाशंकर सिंह की मां ने लखनऊ के हजरतगंज कोतवाली में मायावती के साथ बीएसपी के नेता नसीमुद्दीन सिद्दीकी व अन्य के खिलाफ शिकायत दी। अपनी शकायत में उन्होंने लिखा है कि बीएसपी के प्रदर्शन में उनके परिवार को धमकाने वाले व महिला विरोधी नारे लगाए गए। उन्होंने न्युज एजेंसी (एएनआई) से बात करते हुए कहा कि मेरे बेटे ने कुछ भी गलत नहीं किया लेकिन हम फिर भी क्षमा मांगते हैं।
मायावती पर अमर्यादित टिप्पणी करने के आरोपी बीजेपी के पूर्व वरिष्ठ नेता दयाशंकर सिंह का पुलिस कोई सुराग लगा पाने में नाकाम रही है। वहीं, परिवार पर चौतरफा हमला झेल रही दयाशंकर सिंह की पत्नी स्वाति सिंह ने भी मायावती के खिलाफ लखनऊ में केस दर्ज कराया है। स्वाति सिंह ने कहा कि कल तक मेरे साथ कोई नहीं था। लेकिन आज कई लोग मेरे साथ आए हैं। कहा कि मेरी सास ने एक शिकायत दर्ज कराई थी। इस शिकायत में मेरा नाम भी जोड़ दिया गया है।
स्वाति सिंह ने कहा कि वह अपने पति का कोई बचाव नही कर रही है। लेकिन एक तरफ मायावती के खिलाफ टिप्पणी करने पर बवाल हो रहा है, वहीं दूसरी तरफ हमारे खिलाफ अर्मादित टिप्पणी का कोई विरोध नही किया जा रहा है। इस देश में क्या एक ही बात के लिए दो अलग-अलग कानून है? उन्होंने बसपा कार्यकर्ताओं से तल्खी में पूछा कि बताएं हम अपी बहु-बेटियों को लेकर कहां आएं?
उधर, बहुजन समाज पार्टी (बीएसपी) अध्यक्ष मायावती पर अमर्यादित टिप्पणी करने के आरोपी बीजेपी के पूर्व नेता दयाशंकर सिंह की गिरफ्तारी के लिए 36 घंटे का अल्टीमेटम दिए जाने के बीच पुलिस उनका कोई सुराग लगा पाने में नाकाम रही है। पुलिस अधीक्षक मनोज कुमार झा ने बताया कि सिंह की गिरफ्तारी के लिए उनके संभावित ठिकानों पर दबिश दी जा रही है, लेकिन उनका अभी तक कोई सुराग नहीं मिला है। इससे पहले सिंह के छोटे भाई धर्मेंद्र सिंह को कल पूछताछ के लिए हिरासत में लिया गया था, लेकिन पुलिस को सिंह के बारे में कोई भी जानकारी नहीं मिल सकी। पूछताछ में धर्मेन्द्र लगातार यही कहते रहे कि सिंह 21 जुलाई को तड़के गोरखपुर चले गए थे। उसके बाद उनका सिंह से कोई संपर्क नहीं हुआ है।
झा ने बताया कि पुलिस ने गुरुवार रात बैरिया स्थित सिंह के मामा के घर पर भी दबिश दी थी, लेकिन कुछ हाथ नहीं लगा। सिंह का मोबाइल फोन भी 20 जुलाई की रात एक बजे से स्विच ऑफ है।